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खाने और व्यंजनों के ये किस्से किसी लजीज खाने से कम लजीज नहीं. पढ़कर ही इनका स्वाद आने लगता है. हैदराबाद निजाम की शाही रसोई ने देश को कई तरह के व्यंजन दिए. ये कहा जाता है कि निजाम की शाही रसोई में ज्यादातर व्यंजन बहुत आराम से घंटों पकाए जाते थे.
शाही रसोई का रोज का खर्च
वर्ष 1920 से 40 के दौर में इस शाही रसोई का रोजाना का खर्च 2,000–₹3,000 तक होता था. इसका मतलब हुआ आज के समय में लगभग ₹8–10 लाख रोज. ये रकम केवल शाही मेहमानों और निज़ाम के विस्तृत परिवार (300+ सदस्यों) के खाने पर खर्च होती थी.
हैदराबाद निजाम के शाही किचन का रोज का खर्च लाखों रुपए रोजाना का होता था. (image generated by leonardo ai)
कितने बावर्ची काम करते थे
इस शाही रसोई में करीब 150–200 बावर्ची काम करते थे. हर रसोइया किसी खास डिश का विशेषज्ञ होता था – जैसे दम बिरयानी, रोगन कोरमा, या खमीर रोटी. रोज 50 से अधिक तरह के व्यंजन रोज तैयार होते थे.
जब निजाम उस्मान अली ने हैदराबाद में उस्मानिया यूनिवर्सिटी की स्थापना की तो रसोइयों से कहा कि छात्रों के लिए इल्मी खीर बनाई जाए. (image generated by leonardo ai)
हालांकि इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि “इल्मी खीर” जैसी कोई डिश खाने से सीधा दिमाग तेज़ हो जाता है लेकिन इसमें ऐसी सामग्रियां ज़रूर डाली जाती थीं, जो मस्तिष्क के लिए फायदेमंद मानी जाती हैं.जैसे
– बादाम में विटामिन ई और ओमेगा-6 होता है, जो याददाश्त और फोकस में सहायक होता है
– अखरोट में ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है जो न्यूरॉन हेल्थ में उपयोगी होता है
– खजूर में ग्लूकोज और फाइबर होता है, जो ऊर्जा देने के साथ ब्रेन फंक्शन को बेहतर करता है
– अंजीर में आयरन, मैग्नीशियम होता है, जिससे रक्त संचार बेहतर होता है.
– शुद्ध देसी घी का स्वस्थ फैट मस्तिष्क तंतु का बेहतर पोषण करता है
– केसर और इलायची मूड को बेहतर करते हैं, एंटी ऑक्सीडेंट होते हैं जो मानसिक थकान कम करते हैं
– शहद प्राकृतिक मीठा का करता है और ऊर्जा स्रोत होने के साथ तुरंत एनर्जी देता है
निजाम के खाने में रोज क्या बनता था
अब आइए आपको बताते हैं कि निजाम के यहां खाने में जो रोज बनता था, उसमें क्या क्या होता है
– 10–15 किस्म की बिरयानी
– 8–10 प्रकार की खीर या मीठे
– 20+ प्रकार के कबाब, कोरमा, सालन
– शुद्ध शाकाहारी मेनू भी अलग होता था
इसकी सामग्री में केसर ईरान से आता था तो चांदी और सोने के वर्क जयपुर से. घी अजमेर से, मसाले केरल और अरब से. मांस तो निज़ाम के शिकार से सीधा लाया जाता.
निजाम की रसोई में रोज कम से कम 50 व्यंजन बनते थे. इन्हें एकसाथ टेबल पर देखकर आमंत्रित अतिथि चकरा जाते थे. भोज से पहले संगीत होता था.(image generated by leonardo ai)
क्यों “दम” पकवानों को प्राथमिकता
दम यानी धीमी आंच पर पकाना, ताकि स्वाद, खुशबू और नमी बरकरार रहे. निज़ाम इसे “सब्र और इल्म का खाना” कहते थे. इसे एक कला और ध्यान की प्रक्रिया माना जाता था. तर्क था तेज़ आंच जल्द भूख मिटा सकती है लेकिन दम आंच आत्मा तक स्वाद पहुंचाती है.
बिरयानियों की रात
गुस्से वाला गोश्त
एक दिन निज़ाम बेहद नाराज़ थे. तब खानसामे को लगा, “खाना राजा की भावना को भी दिखाता है.” उसने बनाया, तीखी हरी मिर्च में पका दम मटन.
निजाम ने पूछा: “आज मटन में आग क्यों है?” जवाब मिला: “हुज़ूर, ये आपके ग़ुस्से का स्वाद है.” निज़ाम मुस्कुरा उठे. बाद में ये डिश मशहूर हुई – मिर्च गोश्त के नाम से.
बेगम का जर्दा
सोर्स
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Times of India (Heritage Columns on Chowmahalla Palace kitchen)
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