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कुछ लजीज व्यंजनों को जब आप खा रहे होते हैं तो अंदाज भी नहीं होता कि इनके बनने का पीछे कोई किस्सा भी रहा होगा. भारत के राजघरानों ने देश को कई नए व्यंजन और नयी तरह की मिठाइयां दीं. इनसे जुड़े किस्से भी उतने ही लज़ीज़ और दिलचस्प हैं. ऐसी ही एक कहानी हैदराबाद निजाम द्वारा बनवाई गई इल्मी खीर की भी है. जिसके लिए कहा गया कि इसको खाने से बुद्धि बढ़ जाती है.

खाने और व्यंजनों के ये किस्से किसी लजीज खाने से कम लजीज नहीं. पढ़कर ही इनका स्वाद आने लगता है. हैदराबाद निजाम की शाही रसोई ने देश को कई तरह के व्यंजन दिए. ये कहा जाता है कि निजाम की शाही रसोई में ज्यादातर व्यंजन बहुत आराम से घंटों पकाए जाते थे.

हैदराबाद के निज़ामों की रसोई भारत की सबसे समृद्ध, गूढ़ और शाही रसोई परंपराओं में गिनी जाती है. हैदराबाद के अंतिम निज़ाम मीर उस्मान अली खान की शाही रसोई का बजट उस ज़माने में भी इतना विशाल था कि वह एक छोटे राज्य के पूरे वित्तीय बजट को टक्कर दे सकता था.

शाही रसोई का रोज का खर्च

वर्ष 1920 से 40 के दौर में इस शाही रसोई का रोजाना का खर्च 2,000–₹3,000 तक होता था. इसका मतलब हुआ आज के समय में लगभग ₹8–10 लाख रोज. ये रकम केवल शाही मेहमानों और निज़ाम के विस्तृत परिवार (300+ सदस्यों) के खाने पर खर्च होती थी.

तब इस रसोई का सालाना बजट ₹7–10 लाख सालाना (1930 के दशक में) होता था. आज की मुद्रा में यह ₹25–30 करोड़ प्रति वर्ष के बराबर माना जा सकती है.

हैदराबाद निजाम के शाही किचन का रोज का खर्च लाखों रुपए रोजाना का होता था. (image generated by leonardo ai)

कितने बावर्ची काम करते थे

इस शाही रसोई में करीब 150–200 बावर्ची काम करते थे. हर रसोइया किसी खास डिश का विशेषज्ञ होता था – जैसे दम बिरयानी, रोगन कोरमा, या खमीर रोटी. रोज 50 से अधिक तरह के व्यंजन रोज तैयार होते थे.

खानसामों ने खीर में खजूर, बादाम, अखरोट, सूखा अंजीर, शहद और दूध के मेल से ऐसी खीर बनाई जो आज भी हैदराबादी “इल्मी खीर” के नाम से मशहूर है. अब सवाल ये है कि क्या इल्मी खीर से वाकई बुद्धि बढ़ जाती थी. नाम तो इसका लाजवाब है ही.

जब निजाम उस्मान अली ने हैदराबाद में उस्मानिया यूनिवर्सिटी की स्थापना की तो रसोइयों से कहा कि छात्रों के लिए इल्मी खीर बनाई जाए. (image generated by leonardo ai)

हालांकि इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि “इल्मी खीर” जैसी कोई डिश खाने से सीधा दिमाग तेज़ हो जाता है लेकिन इसमें ऐसी सामग्रियां ज़रूर डाली जाती थीं, जो मस्तिष्क के लिए फायदेमंद मानी जाती हैं.जैसे
– बादाम में विटामिन ई और ओमेगा-6 होता है, जो याददाश्त और फोकस में सहायक होता है
– अखरोट में ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है जो न्यूरॉन हेल्थ में उपयोगी होता है
– खजूर में ग्लूकोज और फाइबर होता है, जो ऊर्जा देने के साथ ब्रेन फंक्शन को बेहतर करता है
– अंजीर में आयरन, मैग्नीशियम होता है, जिससे रक्त संचार बेहतर होता है.
– शुद्ध देसी घी का स्वस्थ फैट मस्तिष्क तंतु का बेहतर पोषण करता है
– केसर और इलायची मूड को बेहतर करते हैं, एंटी ऑक्सीडेंट होते हैं जो मानसिक थकान कम करते हैं
– शहद प्राकृतिक मीठा का करता है और ऊर्जा स्रोत होने के साथ तुरंत एनर्जी देता है

चूंकि ये ये डिश ओस्मानिया यूनिवर्सिटी के उद्घाटन के मौके पर बनाई गई, लिहाजा निज़ाम ने इसे “इल्म (ज्ञान) को समर्पित किया. नाम पड़ा इल्मी खीर. निजाम के कहने पर रसोइयों ने इसे बुद्धिवर्धक सामग्रियों से भर दिया. इल्मी खीर कोई चमत्कारी औषधि नहीं थी लेकिन उसमें मौजूद पोषक तत्व मस्तिष्क के लिए लाभकारी थे.

निजाम के खाने में रोज क्या बनता था

अब आइए आपको बताते हैं कि निजाम के यहां खाने में जो रोज बनता था, उसमें क्या क्या होता है
– 10–15 किस्म की बिरयानी
– 8–10 प्रकार की खीर या मीठे
– 20+ प्रकार के कबाब, कोरमा, सालन
– शुद्ध शाकाहारी मेनू भी अलग होता था
इसकी सामग्री में केसर ईरान से आता था तो चांदी और सोने के वर्क जयपुर से. घी अजमेर से, मसाले केरल और अरब से. मांस तो निज़ाम के शिकार से सीधा लाया जाता.

निजाम की रसोई में रोज कम से कम 50 व्यंजन बनते थे. इन्हें एकसाथ टेबल पर देखकर आमंत्रित अतिथि चकरा जाते थे. भोज से पहले संगीत होता था.(image generated by leonardo ai)
निजाम के यहां हर भोज से पहले इत्र फुहारा और अरबी संगीत होता था. हैदराबाद शाही किचन में दम-पकवानी का दबदबा था तो मांस और मसालों का वैज्ञानिक संतुलन, ये खाना फारसी, तुर्क, मुग़ल और दक्षिण भारतीय शैली का अद्भुत मेल होता था. भोजन को ‘इज़्ज़त’ और ‘इल्म’ का हिस्सा माना जाता था.

क्यों “दम” पकवानों को प्राथमिकता

दम यानी धीमी आंच पर पकाना, ताकि स्वाद, खुशबू और नमी बरकरार रहे. निज़ाम इसे “सब्र और इल्म का खाना” कहते थे. इसे एक कला और ध्यान की प्रक्रिया माना जाता था. तर्क था तेज़ आंच जल्द भूख मिटा सकती है लेकिन दम आंच आत्मा तक स्वाद पहुंचाती है.

बिरयानियों की रात

एक बार निज़ाम उस्मान अली खान ने फारसी राजदूतों को ‘बिरयानी भोज’ पर आमंत्रित किया. बावर्चियों को आदेश दिया गया, “हर बिरयानी का स्वाद अलग होना चाहिए.” 36 घंटे में तमाम तरह की बिरयानियां बनीं- गोश्त, मछली, अंडा, जर्दा, फूल, मेवे, आलू, दही, काले चने… और ना जाने किसकी किसकी बिरयानियां. आखिरी बिरयानी गुलाब जल, केसर और चांदी के वर्क वाली “इत्र बिरयानी” थी – बिना मांस के, सिर्फ सुगंध के लिए.

गुस्से वाला गोश्त

एक दिन निज़ाम बेहद नाराज़ थे. तब खानसामे को लगा, “खाना राजा की भावना को भी दिखाता है.” उसने बनाया, तीखी हरी मिर्च में पका दम मटन.
निजाम ने पूछा: “आज मटन में आग क्यों है?” जवाब मिला: “हुज़ूर, ये आपके ग़ुस्से का स्वाद है.” निज़ाम मुस्कुरा उठे. बाद में ये डिश मशहूर हुई – मिर्च गोश्त के नाम से.

बेगम का जर्दा

एक बार निजाम की बेगम ने नाराज़ होकर भोजन छोड़ दिया. तब निज़ाम ने खानसामे से कहा, “ऐसी मिठास दो कि रूठी रानी भी पिघल जाए.उस दिन गुलाब जर्दा बनाया गया, जिसमें गुलकंद, केसर, मेवा और इत्र था. बेगम ने एक कौर लिया और मुस्कुरा दीं.

सोर्स
The Last Nizam by John Zubrzycki
Hyderabadi Cuisine: A Princely Legacy by Pratibha Karan
Times of India (Heritage Columns on Chowmahalla Palace kitchen)
Raja, Rasoi aur Anya Kahaniyaan — EPIC Channel (Hyderabad episode)
Salar Jung Museum Culinary Archive Collection

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