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नई दिल्ली. सिनेमा के शौकीन हैं तो ये बात तो आप भी मानेंगे की अगर फिल्म में विलेन नहीं, तो फिल्म अधूरी सी है. ऐसी कई फिल्में है, जिनके हीरो के डायलॉग्स के साथ आज भी आपको विलेन्स के डायल़ॉग याद होंगे. शोले का ‘कितने आदमी थे?’, ‘मिस्टर इंडिया’ का ‘मोगैम्बो खुश हुआ’, क्राइम मास्टर गोगो ‘आया हूं तो कुछ तो लेकर जाऊंगा’ जैसे कई ऐसे डायलॉग हैं, जिनको आज भी हम खूब बोलते हैं. इसलिए हीरो की तरह फिल्मों में खलनायकों की भूमिका हमेशा से ही महत्वपूर्ण रही है. ये किरदार न केवल कहानी में तनाव और रोमांच जोड़ते हैं, बल्कि कई बार ये हीरो से भी ज्यादा यादगार बन जाते हैं.

मुंबई में ये एक्टर सिर्फ 1500 रुपये लेकर आया था. भारतीय सेना में अधिकारी बनना चाहते थे, लेकिन किस्मत ने उन्हें स्टार बना दिया. ये एक्टर और को नहीं बल्कि डैनी डेन्जोंगपा हैं. डैनी का जन्म सिक्किम के युक्सोम में एक भूटिया परिवार में हुआ था. उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा नैनीताल के बिरला विद्या मंदिर और दार्जिलिंग के सेंट जोसेफ कॉलेज से पूरी की. डैनी का सपना था कि वे भारतीय सेना में अधिकारी बनें. उन्होंने पश्चिम बंगाल से ‘बेस्ट कैडेट’ का पुरस्कार भी जीता था और गणतंत्र दिवस परेड में भाग लिया था. लेकिन मां ने मना किया और उनका ये सपना चूर हो गया.

क्यों बदला नाम

इसके बाद डैनी ने भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (FTII) में दाखिला लिया. जया बच्चन उनकी क्लासमेट रहीं. डैनी डेन्जोंगपा का असली नाम शेरिंग फिंटसो डेन्जोंगपा है. लेकिन क्लास में सभी उनकी मजाक बनाते थे, जिसके बाद जया ने उन्हें सुझाव दिया था कि वे इसे सिंपल रखें. इसके बाद जया ने सुझाव दिया कि मैं अपना नाम डैनी रख लूं.

डैनी डेन्जोंगपा अपनी फैमिली के साथ. फोटो साभार- रेडिट.

रूप रंग देख जब मिला चौकीदार बनने का ऑफर

FTII से स्नातक होने के बाद, डैनी ने अभिनय की दुनिया में कदम रखा. हालांकि, उन्हें अपने पूर्वोत्तर भारतीय रूप-रंग के कारण प्रारंभिक दिनों में भेदभाव का सामना करना पड़ा. एक बार एक प्रसिद्ध निर्माता ने उन्हें अपने बंगले का चौकीदार बनने का प्रस्ताव दिया था.

1972 में किया डेब्यू, बने बॉलीवुड का सबसे खतरनाक विलेन

डैनी डेन्जोंगपा ने हार नहीं मानी. उन्होंने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत बी.आर. इशारा की फिल्म ‘जरूरत’ (1972) से की. उन्हें पहला बड़ा ब्रेक गुलज़ार की ‘मेरे अपने’ (1971) से मिला. उन्होंने पहली बार खलनायक की भूमिका बी.आर. चोपड़ा की ‘धुंध’ (1973) में निभाई. इसके बाद डैनी ने ‘चोर मचाए शोर’, ‘फकीरा’, ‘कालीचरण’, ‘देवता’, ‘पापी’, ‘बंदिश’, ‘द बर्निंग ट्रेन’ और ‘चुनौती’ जैसी कई फिल्मों में काम किया. ‘कांचा चीना’, ‘बख्तावर’ और ‘खुदा बख्श’ जैसे किरदारों ने उन्हें बॉलीवुड का सबसे खतरनाक विलेन बना दिया. उनके अभिनय ने उन्हें एक दमदार और यादगार खलनायक के रूप में स्थापित किया.

डैनी डेन्जोंगपा के बेटे रिनजिंग डेन्जोंगपा आज एक सफल बिजनेसमैन हैं. फोटो साभार- रेडिट.

सिक्किम की राजकुमारी से शादी

साल 1990 में डैनी डेन्जोंगपा ने सिक्किम की राजकुमारी गवा डेन्जोंगपा से शादी की. उनके दो बच्चे हैं- बेटा रिनजिंग और बेटी पेमा. रिनजिंग का सपना अपने पिता की तरह सफल एक्टर बनने का था.

पहली ही फिल्म बनी आखिरी

रिनजिंग ने 2021 में ओटीटी फिल्म ‘स्वाक्ड’ से डेब्यू किया लेकिन पहली फिल्म के बाद समझ गए कि ये बस की बात नहीं है और पिता की विरासत निभाना और भी कठिन है. एक फिल्म के बाद ही उन्होंने बॉलीवुड छोड़ दिया. हालांकि वे अभिनेता नहीं बन सके, लेकिन आज एक सफल बिजनेसमैन के तौर पर डैनी डेन्जोंगपा का नाम रोशन कर रहे हैं.

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