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रेग‍िस्‍तान की ‘वैष्‍णों देवी’! बॉर्डर का वो आखिरी हिंदू मंदिर, ज‍िसकी शक्‍ति से कांप उठा था पाकिस्‍तानी ब्रिगेडियर

The Last Hindu Temple on Pakistan Border: कहते हैं श‍िव और शक्‍ति के म‍िलन से ही इस सृष्‍ट‍ि की रचना हुई है और इस सृष्‍ट‍ि के न‍िरंतर चलने के ल‍िए भी श‍िव-शक्‍ति की ही जरूरत होती है. यही वजह है कि सनातन धर्म में श‍िव और शक्‍ति दोनों की आराधना का व‍िशेष महत्‍व है. यूं तो देश में देव‍ियों के कई मंद‍िर हैं. लेकिन आज हम जि‍स मंदिर के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, वह ऐसा मंदिर है ज‍िसके दरबार में पाकिस्‍तानी जनरल भी माथा टेकते हैं. राजस्‍थान समेत पूरे देश में इस मंदिर की व‍िशेष मान्‍यता है और इस मंदिर को ‘थार की वैष्णो देवी’ के नाम से भी जाना जाता है. हम बात कर रहे हैं जैसलमेर के तनोट माता मंदिर की. हाल ही में राजस्थान के मुख्‍यमंत्री भजनलाल शर्मा भी इस मंदिर में माथा टेकने पहुंचे थे. आइए बताते हैं इसके बारे में.

तनोट माता का मंदिर, पाकिस्तान बॉर्डर पर आखिरी हिंदू मंदिर है. यहां से पाकिस्तान का बॉर्डर 20 किलोमीटर दूर है. मंद‍िरों के संचालन का काम हमेशा लोगों या पंड‍ितों के हाथ में रहा है. लेकिन भारत-पाक की सीमा पर स्‍थ‍ित ये एक मात्र मंदिर है, जिसका संचालन सीमा सुरक्षा बल के जवान करते हैं. मंदिर की साफ सफाई के अलावा मंदिर में होने वाली तीन समय की आरती बीएसएफ के जवान ही करते हैं. मातेश्वरी तनोट राय मंदिर में प्रतिदिन सीमा सुरक्षा बल के जवानों द्वारा की जाने वाली आरती में भक्ति भावना के साथ जोश का अनूठा रंग नजर आता है.

भारत पाकिस्तान के युद्ध के दौरान एक ऐसी घटना हुई जिससे पाकिस्तानी फौजियों क अपनी गलती का अहसास हुआ और मां के सामने सिर झुका कर वापस चले गए. कहा जाता है कि पाकिस्तानी सैनिकों मे मंदिर में तीन अलग-अलग जगहों से आक्रमण किया था. लेकिन वह कुछ भी कर नहीं पाएं. 1965 में पाकिस्तानी सेना ने करीब तीन हजार बम गिराए, लेकिन मंदिर पर जरा भी प्रभाव नहीं पड़ा था. वहीं इस युद्ध के दौरान मंदिर के प्रांगण में करीब 450 बम ग‍िरे, लेकिन एक भी फटा नहीं. आज भी ये बम मंदिर के संग्रहालय में सुरक्षित हैं. माता के मंदिर में हुए इस चमत्‍कार को देखकर पाकिस्तान के तत्कालीन ऑफिसर ब्रिगेडियर शाहनवाज खान हैरान रह गए और उन्‍होंने भारत सरकार से परमिशन लेकर माता को चांदी का छत्र भेंट क‍िया था.

इस मंदिर की वास्‍तुकला अद्भुत है और स्थानीय कारीगरों की कुशल शिल्पकला का एक आदर्श उदाहरण है. यह दो मंजिला इमारत है जिसके शीर्ष पर एक केंद्रीय गुंबद है. मंदिर की दीवारों पर रंग-बिरंगी पेंटिंग और जटिल नक्काशी की गई है.

तनोट माता मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय

अगर आप राजस्‍थान के इस मंदिर में दर्शन करना चाहते हैं, तो इसके लिए सबसे अच्‍छा समय नवंबर से जनवरी तक का माना जाता है. क्योंकि इस दौरान मौसम सुहाना रहता है. इस दौरान तापमान आरामदायक होता है और हवा शुष्क होती है. इसके साथ ही सर्द‍ियों में आप आसपास के रेग‍िस्‍थान का भी आनंद ले सकते हैं.

कैसे पहुंचे तनोट माता मंदिर?

हवाई मार्ग से : जैसलमेर का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जोधपुर हवाई अड्डा है, जहां से आप जैसलमेर पहुंचने के लिए कैब किराए पर ले सकते हैं. शहर तक आप कैब से 4 घंटे में पहुंच सकते हैं. जैसलमेर के मुख्य शहर से आप 2 घंटे में तनोट माता मंदिर पहुंच जाएंगे.

ट्रेन से : जैसलमेर रेलवे स्टेशन और तनोट माता मंदिर के बीच 123.1 किमी की दूरी है. जैसलमेर तक रेलवे के जरिए पहुंचा जा सकता है और जैसलमेर में शीर्ष कार रेंटल कंपनियों से कैब लेकर दो घंटे में पहुंचा जा सकता है.

सड़क मार्ग से : तनोट माता मंदिर तक पहुंचने के लिए जैसलमेर से सड़क मार्ग सबसे अच्छा है. यात्रा में लगभग 1 घंटा 52 मिनट लगते हैं और यह जैसलमेर से 120 किमी दूर स्थित है.

Tags: Tour and Travels, Travel

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