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बागेश्वर: उत्तराखंड की हरी-भरी वादियों और बर्फ से ढकी चोटियों के बीच बसा मुनस्यारी क्षेत्र सिर्फ अपनी खूबसूरती के लिए नहीं, बल्कि यहां की मशहूर ‘सफेद राजमा’ (Safed Rajma) के लिए भी देशभर में पहचान बना चुका है. यह सफेद राजमा न सिर्फ खाने में बेहद स्वादिष्ट होती है, बल्कि इसकी खेती, पकाने का तरीका और पारंपरिक खुशबू इसे बाकी सभी राजमा की किस्मों से अलग बनाते हैं.

मुनस्यारी की खास मिट्टी, मौसम और पहाड़ी जलवायु इस राजमा को वह स्वाद और सौंधापन देते हैं, जो आपको कहीं और नहीं मिलेगा. सफेद राजमा हल्की, सुपाच्य और प्रोटीन से भरपूर होती है. खास बात ये है कि इसके दाने उबालने पर जल्दी गल जाते हैं, जिससे इसकी ग्रेवी बेहद लाजवाब बनती है. यही वजह है कि यह राजमा उत्तराखंड के त्योहारों, पारिवारिक आयोजनों और मेहमानों की खातिरदारी में खास जगह रखती है.

ऐसे बनती है मुनस्यारी की सफेद राजमा
बागेश्वर की स्थानीय व्यापारी महिला संतोषी देवी बताती हैं कि इस राजमा को बनाने की शुरुआत होती है रातभर भिगोने से. फिर सुबह हल्के नमक के साथ इसे प्रेशर कुकर में पकाया जाता है. इसके बाद लोहे की कढ़ाई में देसी घी गर्म कर उसमें जीरा, तेजपत्ता, प्याज, लहसुन, अदरक का तड़का दिया जाता है. जब मसाले सुनहरे हो जाते हैं, तब इसमें हल्दी, धनिया, गरम मसाला और टमाटर मिलाकर अच्छी तरह भूनते हैं. आखिर में उबली हुई सफेद राजमा डालकर धीमी आंच पर पकाया जाता है. इसका स्वाद इतना लाजवाब होता है कि जो भी एक बार खाए, उसे जिंदगी भर याद रहता है.

पहाड़ों की परंपरा और स्वाद दोनों का प्रतीक
सफेद राजमा को पहाड़ों में चावल (भात) के साथ खाना पारंपरिक चलन है. गांवों में आज भी लोग इसे लकड़ी के चूल्हे पर पकाना पसंद करते हैं, जिससे इसका असली स्वाद और सौंधी खुशबू और भी बढ़ जाती है. लोहे के बर्तनों में परोसने से इसका जायका और निखर जाता है.

किसानों के लिए भी बन रही है रोज़गार का जरिया
मुनस्यारी और आसपास के इलाकों में कई किसान आज इसकी जैविक खेती कर रहे हैं. राज्य सरकार और स्थानीय संस्थाएं भी इसकी ब्रांडिंग और मार्केटिंग पर काम कर रही हैं. सफेद राजमा न सिर्फ यहां की सांस्कृतिक विरासत को सहेज रही है, बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार और पहचान भी दे रही है. अगर कभी उत्तराखंड जाएं, तो इस खास सफेद राजमा का स्वाद जरूर लें. यकीन मानिए, इसका स्वाद और सौंधापन लंबे वक्त तक आपकी जुबान पर रहेगा.

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