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Muhnochwa Real Story: साल 2002 की गर्मियों में गांव के ज्यादातर लोग या तो घर की छत पर सोते थे या खुले आसमान के नीचे घर के बाहर द्वार पर, लेकिन उस वक्त कुछ ऐसा हुआ कि लोग रात में सोने से डरने लगे और घर की चार दीवारी के अंदर ही बिस्तर लगाने लगे. उत्तर प्रदेश में रातें डरावनी होने लगी थीं. शहर से लेकर गांव तक एक रहस्यमयी अनदेखे प्राणी की चर्चा होने लगी, जिसने लोगों की नींद उड़ा दी थी. नाम था ‘मुंहनोचवा’.

गांव-गांव में इस नाम का इतना आतंक था कि लोग पूरी रात जागते रहते थे. अफवाह थी कि कोई ऐसा जानवर है जो रात के अंधेरे में लोगों के मुंह (चेहरे) को नोच कर भाग जाता है.

लोग बाल्टी में पानी लेकर सोने को मजबूर
लोग कहते थे कि उसकी आंखों से लाल रोशनी निकलती है, वह आसमान में उड़ता है और वह लाल रोशनी दिखाई देती है. लेकिन, किसी ने इसे देखा नहीं था. पूरे प्रदेश में इस नाम की दहशत थी. सिर्फ गांव ही नहीं, यूपी के बड़े शहरों में भी मुंहनोचवा का खौफ फैल चुका था. लोग रात में अपने आसपास बाल्टी भर के पानी रखकर सोते थे क्योंकि अफवाह थी कि पानी फेंकने से मुंहनोचवा मर जाता है. गांव के बुजुर्ग इसे जिन्न बताते थे. लोगों की कल्पनाएं भी उनके अनुभवों जितनी अजीब थीं.

कोई एलियन तो कोई खुफिया एजेंट
खबरों में रोजाना ‘जितने मुंह उतने मुंहनोचवा’, ‘नरभक्षी का आतंक’, ‘एलियंस का हमला’ जैसी हैडलाइंस छपती थीं. कई जिलों में लोग ढोल-नगाड़े बजाकर रात भर पहरा देते थे. कुछ लोगों ने मुंहनोचवा का वीडियो रिकॉर्ड करने का दावा भी किया, लेकिन वह आज तक कहीं नहीं मिला. उस वक्त कैमरे वाले मोबाइल भी कम थे. कुछ लोग इसे दूसरे ग्रह से आया एलियन बताते, तो कुछ विदेशी खुफिया एजेंट समझते थे. किसी भी अनजान व्यक्ति को देख वह रोककर तलाशी ली जाती थी कि कहीं वह वही तो नहीं.

जितने मुंह उतने रूप
मुंहनोचवा के कई रूपों की अफवाहें थीं. कोई इसे 10-20 इंच लंबा और चौड़ा बताता था, कोई चमगादड़ जैसे पंख वाला, कोई सियार या भेड़िए जैसी आवाज निकालने वाला जानवर. कुछ इसे दो-तीन फीट लंबा मकड़ी जैसा, जिसके 6 पैर हों, बताते थे. कुछ तो इसे उड़ने वाली लोमड़ी बताते थे, जिसका आधा शरीर मानव और आधा किसी जानवर का. जितने मुंह, उतने रूप! यह वह दौर था जब बिना सोशल मीडिया के यह डर पूरे उत्तर प्रदेश में फैला हुआ था.

कैसे खत्म हुआ काल्पनिक आतंक?
आम आदमी से लेकर शासन प्रशासन तक इस अफवाह से परेशान थे. लेकिन, इसका असली चेहरा कोई देख नहीं पाया था. इसे नियंत्रित करना संभव नहीं था क्योंकि यह असल में कोई जीवित प्राणी नहीं था. लगभग दो महीने तक चला यह डर और अफवाह का दौर खत्म हो गया. यह काल्पनिक डर मनगढ़ंत कहानियों में बदल गया और वह काल्पनिक दरिंदा अपनी दुनिया में वापस लौट गया.

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