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गोंडा के किसान शिवराज वर्मा ने मचान विधि से लौकी की खेती कर आधे बीघे में तीन महीने में 1.5 लाख की कमाई की. उन्होंने पानी संस्थान और उद्यान विभाग से मदद पाई. इस विधि से उत्पादन ज्यादा, रोग कम और बाजार में डिमांड…और पढ़ें

प्रगतिशील किसान शिवराज वर्मा.
हाइलाइट्स
- गोंडा के किसान मचान विधि से लौकी की खेती कर रहे हैं.
- उन्होंने पानी संस्थान और उद्यान विभाग से मदद पाई.
- इस विधि से उत्पादन ज्यादा, रोग कम और बाजार में डिमांड बनी रहती है.
गोंडा: उत्तर प्रदेश गोंडा जिले के रानीजोत गांव के एक किसान लौकी की खेती करके सालाना लाखों रुपए कमा रहे हैं .उन्होंने बताया कि लौकी की खेती मचान विधि से कर रहे हैं इससे लौकी की पैदावार अधिक होता है. कीट और रोग लगने की संभावना कम हो जाती है.
क्या है मचान विधि?
शिवराज बताते हैं कि मचान विधि बेल वाली फसलों के लिए बहुत कारगर है. इसमें खेत में बांस या जाल से एक ढांचा तैयार किया जाता है, जिस पर पौधों की बेलें चढ़ाई जाती हैं. इससे एक नहीं कई फायदे होते हैं. जैसे- सब्ज़ी साफ-सुथरी रहती है, ज़मीन से सीधा संपर्क नहीं होने से कीट और बीमारी का खतरा कम हो जाता है, और पैदावार भी अच्छी होती है.
खेती का बदला तरीका
पहले शिवराज जमीन पर लौकी की खेती करते थे, लेकिन परिणाम बहुत अच्छे नहीं मिलते थे. फिर उन्हें “पानी संस्थान” और “उद्यान विभाग” से मचान विधि की जानकारी मिली. उन्होंने इसे आज़माया और नतीजा चौंकाने वाला रहा. वह बताते हैं कि इस बार उन्होंने सिर्फ आधे बीघे में मचान विधि से लौकी उगाई और तीन से चार महीनों में लगभग 1.5 लाख रुपए की कमाई कर ली.
शिवराज की मानें तो लागत बहुत कम आई क्योंकि बीज और डोरी पानी संस्थान और उद्यान विभाग ने निशुल्क दिए थे. केवल बांस की संरचना के लिए उन्होंने अपनी व्यवस्था से काम चलाया. उनके पास पहले से ही बांस की पर्याप्त संख्या थी. इसलिए खेती पर खास खर्च नहीं आया.
सप्लाई के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता
शिवराज कहते हैं कि सबसे बड़ी बात ये है कि उन्हें अपनी लौकी बेचने के लिए बाजार नहीं जाना पड़ता. दुकानदार खुद गांव आकर लौकी खरीद कर ले जाते हैं और नगद पैसे भी दे जाते हैं. इससे न तो ट्रांसपोर्ट का खर्च होता है, न ही वक्त बर्बाद.
क्या है आगे की प्लानिंग?
शिवराज का इरादा है कि अगले सीजन में वे इस खेती को ज्यादा बड़े स्तर पर करेंगे. उन्होंने कहा कि अब जब कम लागत में अच्छा मुनाफा हो रहा है तो क्यों न इस खेती को और बढ़ाया जाए.”
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