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भारतीय वायुसेना आज 93वां वायुसेना दिवस गर्व और उत्साह के साथ मना रही है. हिंडन एयरफोर्स स्टेशन पर इस मौके पर अनुशासन, शौर्य और ताकत की झलक देखने को मिली, जिसने सभी का मन मोह लिया. राफेल, SU-30MKI, अपाचे हेलीकॉप्टर और कई उन्नत विमानों ने अपनी अद्भुत क्षमताओं का प्रदर्शन किया. जमीन से लेकर आसमान तक, भारतीय वायुसेना की वह ताकत सामने आई, जो हर चुनौती में दुश्मनों को चौंका देती है.

भारतीय वायुसेना का EMB-145I AEW&C, जिसे नेत्रा कहा जाता है, एक खास हवाई निगरानी विमान है. इसे ब्राजील की कंपनी एम्ब्रेयर ने बनाया है. भारत ने 2008 में इसके तीन विमानों का ऑर्डर दिया था, जिनमें पहला 2012 में मिला और 2017 में इसे वायुसेना में शामिल किया गया. नेत्रा में लगे शक्तिशाली रडार की क्षमता 240 डिग्री तक 375 किलोमीटर की दूरी पर दुश्मन विमानों को पकड़ने की है. यह हवा से चेतावनी देने के साथ युद्ध में भी अहम मदद करता है. 2019 के बालाकोट एयरस्ट्राइक में नेत्रा ने बड़ी भूमिका निभाई, जब इसने दुश्मन की गतिविधियों पर नजर रखी और भारतीय लड़ाकू विमानों को निर्देश दिए. यह विमान सीमा सुरक्षा और आपदा राहत कार्यों में भी उपयोगी साबित होता है.

भारतीय वायुसेना का सु-30एमकेआई एक बहु-भूमिका वाला लड़ाकू विमान है, जिसे हवा में श्रेष्ठता, जमीनी हमले और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसे रूस की सुकोई कंपनी ने 1980 के दशक में विकसित किया था, जबकि भारत के लिए इसका एमकेआई संस्करण 1996 में ऑर्डर किया गया. पहला विमान 2002 में वायुसेना में शामिल हुआ और अब इसका निर्माण भारत में HAL द्वारा किया जाता है. यह विमान 17,300 मीटर की अधिकतम ऊंचाई तक उड़ान भर सकता है. इसकी लड़ाई रेंज 1,270 किमी (जमीन के पास) और फेरी रेंज 3,000 किमी तक है, जिसे ईंधन भराई से और भी बढ़ाया जा सकता है. इसमें 30 मिमी की तोप, ब्रह्मोस जैसी मिसाइलें लगी हैं, जो 300 किमी तक हमला करने में सक्षम हैं. यह सुपरमैन्यूवरेबल, थ्रस्ट वेक्टरिंग तकनीक और उन्नत रडार से लैस है. 2019 के बालाकोट हमले में इसने पाकिस्तानी एफ-16 से मुकाबला किया और भारतीय अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

भारतीय वायुसेना का ALH Mk-III (ध्रुव) एक उन्नत हल्का हेलीकॉप्टर है जो खोज-बचाव, सैनिक परिवहन, निगरानी और हमला जैसी कई भूमिकाएं निभाने में सक्षम है. इसे भारत की हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने 1990 के दशक में विकसित किया और इसकी पहली उड़ान 2001 में हुई. Mk-III संस्करण 2012 में सेना और वायुसेना में शामिल हुआ, जबकि नौसेना में इसे 2021 में शामिल किया गया. इसकी क्षमता 6,000 मीटर की ऊंचाई तक उड़ने, अधिकतम 280 किमी/घंटा की रफ्तार से उड़ान भरने और 630 किमी रेंज तय करने की है. इसमें शक्ति इंजन, कांच का कॉकपिट और हथियारों में मशीन गन, रॉकेट, टॉरपीडो जैसी सुविधाएं हैं. यह हेलीकॉप्टर सियाचिन जैसे ऊंचाई वाले कठिन इलाकों में भी कारगर है. इसने कई अभियानों में भाग लिया है, जैसे 2013 की उत्तराखंड बाढ़ में आपदा राहत कार्य और आतंकवाद विरोधी अभियानों में सहयोग.

भारतीय वायुसेना का आकाश एक मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली है, जो हवाई हमलों जैसे लड़ाकू विमान, क्रूज मिसाइल और ड्रोन से बचाव करती है. इसे DRDO द्वारा 1980 के दशक में विकसित किया गया और इसका पहला परीक्षण 1990 में हुआ. जुलाई 2015 में यह वायुसेना में शामिल हुई और अब इसका निर्माण BDL और BEL करती हैं. इसकी रेंज 45 किमी, ऊंचाई 18 किमी और गति मैक 2.5 से 3.5 है. इसकी खासियत है कि यह मोबाइल है, सभी मौसम में काम करती है, बहु-लक्ष्य क्षमता रखती है और इसमें स्वदेशी राजेंद्र रडार लगा है. यह क्षेत्रीय हवाई रक्षा प्रदान करती है और भारत-पाकिस्तान तनाव में LOC पर ड्रोन हमलों को रोकने तथा बालाकोट अभियानों में महत्वपूर्ण रही.

भारतीय वायुसेना का राफेल एक बहु-भूमिका वाला लड़ाकू विमान है, जिसका इस्तेमाल हवाई श्रेष्ठता, जमीनी हमला, टोही और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध के लिए किया जाता है. इसे फ्रांस की डसॉल्ट एविएशन ने 1980 के दशक में विकसित किया और इसकी पहली उड़ान 1986 में हुई. भारत ने 2016 में 36 विमानों का सौदा किया था. पहला विमान जुलाई 2020 में आया और सितंबर 2020 में वायुसेना में शामिल हुआ. इसकी अधिकतम ऊंचाई 15,240 मीटर, गति मैक 1.8+, लड़ाई रेंज 1,850 किमी और फेरी रेंज 3,700 किमी है. इसकी खासियतें हैं ओम्निरोल क्षमता, AESA रडार, मेटियर मिसाइल से 100+ किमी तक हमला. 2020 के लद्दाख स्टैंडऑफ में इसने चीन की गतिविधियों पर नजर रखी और सीमा सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

भारतीय वायुसेना का रोहिणी एक 3डी मध्यम दूरी का हवाई निगरानी रडार है, जो हवाई हमलों से बचाव करता है और लड़ाकू विमान, मिसाइल और ड्रोन का पता लगाने में सक्षम है. इसे DRDO ने 2000 के दशक में विकसित किया और पहला परीक्षण 2006 में हुआ. अगस्त 2008 में इसे वायुसेना में शामिल किया गया और अब इसका निर्माण BEL द्वारा किया जाता है. इसकी रेंज 170-200 किमी तक है और यह 15-18 किमी ऊंचाई तक निगरानी कर सकता है. यह 360 डिग्री घूमकर कई लक्ष्यों को ट्रैक करता है. खासियतों में शामिल हैं मोबाइल डिजाइन, सभी मौसम में काम करने की क्षमता, ECCM तकनीक और कम पता लगने की संभावना. यह सीमा सुरक्षा में बेहद उपयोगी है और भारत-चीन स्टैंडऑफ 2020 तथा भारत-पाकिस्तान तनाव के दौरान हवाई निगरानी में महत्वपूर्ण साबित हुआ.

भारतीय वायुसेना का अपाचे (AH-64E) एक उन्नत हमलावर हेलीकॉप्टर है, जिसे एंटी-टैंक, क्लोज एयर सपोर्ट, निगरानी और हमले के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसे अमेरिका की बोइंग कंपनी ने 1970 के दशक में विकसित किया था और इसकी पहली उड़ान 1975 में हुई. भारत ने 2015 में 22 अपाचे हेलीकॉप्टरों का सौदा किया था, जिसका पहला बैच सितंबर 2019 में वायुसेना में शामिल हुआ. अब इन्हें भारतीय सेना को भी मिलना शुरू हो गया है. इसकी अधिकतम ऊंचाई 6,100 मीटर, गति 293 किमी/घंटा और लड़ाई रेंज 476 किमी है. यह हेलफायर मिसाइल से 8-11 किमी तक हमला करने में सक्षम है. इसकी खासियतों में शामिल हैं मिलीमीटर वेव रडार, नाइट विजन, कवच सुरक्षा और उन्नत सेंसर. लद्दाख स्टैंडऑफ 2020 में अपाचे ने चीन की गतिविधियों पर नजर रखने और सीमा सुरक्षा सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई.

C-130J सुपर हरक्यूलिस भारतीय वायुसेना का एक ताकतवर मल्टी-रोल ट्रांसपोर्ट विमान है. इसे अमेरिका की लॉकहीड मार्टिन कंपनी ने बनाया और यह 2011 में भारतीय वायुसेना में शामिल हुआ. यह विमान सैनिकों, हथियारों और राहत सामग्री को तेज़ी से दूर-दराज़ के इलाकों तक पहुंचाने की क्षमता रखता है. इसकी रफ़्तार लगभग 670 किमी प्रति घंटा है और यह 28,000 फीट की ऊंचाई तक उड़ान भर सकता है. इसमें नाइट विज़न सिस्टम और शॉर्ट रनवे से टेकऑफ़-लैंडिंग जैसी विशेष क्षमताएं हैं. लद्दाख, बालाकोट और कई राहत अभियानों में इसने अपनी शानदार उपयोगिता और मजबूती साबित की. यही वजह है कि C-130J को भारतीय वायुसेना का भरोसेमंद “एयर वॉरियर” कहा जाता है.

भारतीय वायुसेना का मिग-29UPG एक बहु-भूमिका वाला लड़ाकू विमान है, जो हवाई श्रेष्ठता, इंटरसेप्शन और जमीनी हमले के लिए इस्तेमाल होता है. इसे 1970 के दशक में सोवियत संघ की मिकोयान कंपनी द्वारा विकसित किया गया और पहली उड़ान 1977 में भरी गई. भारत ने 1984 में इसका ऑर्डर दिया और पहला विमान 1987 में वायुसेना में शामिल हुआ. अब इसे HAL द्वारा अपग्रेड किया जाता है. मिग-29UPG की अधिकतम ऊंचाई 18,000 मीटर, गति मैक 2.3+ है, जबकि लड़ाई रेंज 700-900 किमी और फेरी रेंज 2,100 किमी है. यह आर-77 मिसाइल से 80-110 किमी तक हमला कर सकता है. विमान की खासियतों में फ्लाई-बाय-वायर सिस्टम, झुक-एमई रडार और थ्रस्ट वेक्टरिंग शामिल हैं. इसने 1999 के कारगिल युद्ध में मिराज-2000 को एस्कॉर्ट किया और 2019 बालाकोट स्ट्राइक के बाद पाकिस्तानी विमानों से मुकाबला किया.

भारतीय वायुसेना का मिग-21 एक सुपरसोनिक लड़ाकू विमान है, जो हवाई रक्षा, इंटरसेप्शन और जमीनी हमलों के लिए इस्तेमाल होता है. इसे 1950 के दशक में सोवियत संघ की मिकोयान-गुरेविच कंपनी ने विकसित किया और इसकी पहली उड़ान 1956 में हुई. भारत ने 1963 में इसे वायुसेना में शामिल किया और पहला स्क्वाड्रन 1964 में तैयार हुआ. मिग-21 की अधिकतम ऊंचाई 17,500 मीटर, गति मैक 2.0, और लड़ाई रेंज 1,470 किमी है. यह मिसाइलों से 50+ किमी तक हमला कर सकता है. विमान की खासियतों में हल्का और फुर्तीला होना शामिल है, जबकि अपग्रेडेड ‘बाइसन’ संस्करण में उन्नत रडार भी है. मिग-21 ने 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कई दुश्मन विमानों को मार गिराया. इसके अलावा कारगिल 1999 और बालाकोट 2019 में भी इसने सक्रिय भूमिका निभाई. अब इसे रिटायर किया जा रहा है.
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