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Ghasi Ji Peda: सीकर के चिराना गांव में घासी जी के पेड़े बहुत प्रसिद्ध हैं, जिनकी डिमांड विदेशों में भी है. विष्णु शर्मा 50 साल से पारंपरिक तरीके से शुद्ध भैंस के दूध से पेड़े बना रहे हैं.

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विदेशों में भी फेमस ये मिठाई, 50 सालों से लोगों के दिलों पर रहा है राज

Sikar Special Sweets

हाइलाइट्स

  • घासी जी के पेड़े विदेशों में भी प्रसिद्ध हैं.
  • पेड़े बनाने की कला विष्णु शर्मा ने दादाजी से सीखी.
  • पेड़े शुद्ध भैंस के दूध से लकड़ी की भट्टी पर बनते हैं.

Ghasi Ji Peda: सीकर और झुंझुनू जिले के छोटे से गांव चिराना में घासी जी के पेड़े बहुत मशहूर हैं. इन पेड़ों की मांग देश-विदेश में भी है. इनके पेड़े बेहद स्वादिष्ट होते हैं. चिराना में और भी पेड़े बनाने वाले हलवाई और दुकानें हैं, लेकिन घासी जी के पेड़े किसी ब्रांड से कम नहीं हैं. विदेशों में भी इन पेड़ों की बहुत पसंद की जाती है. छोटे-छोटे गोल आकार के ये पेड़े इतने लाजवाब होते हैं कि ऑर्डर पर विदेश में भी भेजे जाते हैं.

दादाजी से सीखी थी पेड़े बनाने
दादाजी से सीखी थी पेड़े बनाने की कला घासी जी के पेड़े बनाने वाले हलवाई विष्णु शर्मा ने बताया कि उनकी दुकान 50 साल पुरानी है. वे 50 साल से लगातार एक ही तरीके से पेड़े बना रहे हैं. उनके दादाजी घासी जी महाराज ने इस दुकान की शुरुआत की थी. अब विष्णु शर्मा खुद इस दुकान पर पेड़े बनाते हैं. पेड़े बनाने में वे हमेशा स्वच्छता और शुद्धता का ध्यान रखते हैं. उन्होंने पेड़े बनाने की कला अपने दादाजी से सीखी है.

पेड़े की रेसिपी अन्य हलवाई की दुकानों से अलग
शुद्ध भैंस के दूध का किया जाता है प्रयोग विष्णु शर्मा जी ने बताया कि उनके पेड़े की रेसिपी अन्य हलवाई की दुकानों से अलग है. वे पूर्ण सात्विक तरीके से पेड़े बनाते हैं और 50 साल पुरानी तकनीक यानी लकड़ी की भट्टी पर ही कई घंटों का समय लगाकर स्वादिष्ट पेड़े तैयार करते हैं. गैस पर पेड़े जल्दी बन जाते हैं, लेकिन उनमें स्वाद नहीं होता. उनके पेड़ों में किसी भी प्रकार की मिलावट नहीं की जाती. वे शुद्ध भैंस के दूध का ही प्रयोग करते हैं.

विदेश में भी है भारी मांग
विदेश में भी है भारी मांग विष्णु शर्मा ने बताया कि उनके पेड़े की मिठास को लोग बहुत पसंद करते हैं. विदेश जाने वाले लोग अक्सर यहां से पेड़े ले जाते हैं. उनके पेड़े इटली, जापान, ईरान, ईराक सहित कई देशों में जा चुके हैं. इसके अलावा दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हरियाणा आदि जगहों पर भी भेज चुके हैं.

दूर-दूर से लोग यहां आते
बड़े देसी अंदाज में बनाते हैं पेड़े पारंपरिक तरीके से बनाए जाने वाले इन पेड़ों की मिठास की चर्चा अक्सर होती रहती है. लकड़ी की धीमी आंच पर भैंस के शुद्ध दूध को धीरे-धीरे उबाला जाता है और फिर चीनी के घोल को दूध में मिलाया जाता है. पेड़े बनाने की इस अनोखी विधि को जानने के लिए दूर-दूर से लोग यहां आते हैं. एक बार में केवल अनुपात के अनुसार ही पेड़े बनते हैं और इन पेड़ों में किसी भी प्रकार की मिलावट नहीं की जाती.

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