[ad_1]
Last Updated:
Mrikula temple lahaul spiti : इस मंदिर में मां काली का वो खप्पर भी है, जिसमें देवी ने महिषासुर का रक्त इक्क्ठा कर उसका वध किया था. मान्यता है कि इस खप्पर को देखने वाले लोग अंधे हो जाते हैं.

मृकुला माता मंदिर
हाइलाइट्स
- महाभारत काल में बने इस मंदिर की नक्कशी देखने वाली है.
- इसे भीम जो लकड़ी लाए थे, उसी से बनाया गया.
- मंदिर काली के महिषासुरमर्दिनी अवतार को समर्पित है.
Mysterious temple/कुल्लू. हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति में देवी काली का एक ऐसा मंदिर है, जिससे जुड़ी मान्यताएं किसी को भी अचंभित कर देंगी. स्पीति के उदयपुर में मौजूद देवी काली के महिषासुरमर्दिनी अवतार को समर्पित इस मंदिर में मां काली का वो खप्पर भी है, जिसमें देवी ने महिषासुर का रक्त एकत्रित कर उसका संहार किया था. इस मंदिर को लोग इसकी खूबसूरत नक्काशी के लिए भी जानते है. पुजारी बलिराम कहते हैं कि इस मंदिर को विश्वकर्मा ने बनवाया था. इस मंदिर को एक ही पेड़ से बनाया गया है, जिसे महाभारत काल में भीम यहां लेकर आए थे. ये मंदिर अपनी नक्काशी के लिए भी जाना जाता है. इसकी दीवारों की नक्काशी देखते ही बनती है. इस मंदिर को द्वापर युग के दौरान पांडवों के वनवास काल में बनाया गया. इसमें मां काली की महिषासुरमर्दिनी के आठ भुजाओं वाले रूप में पूजा की जाती है. ये मंदिर कश्मीरी कन्नौज शैली में बना है.
बिना पूजा भोजन-पानी निषेध
इस मंदिर में पूरी रामायण लिखी गई है. नक्काशी के जरिए शिव पार्वती के विराट रूप दर्शाए गए हैं. महाभारत को दर्शाया गया है. भगवान बुद्ध, शिव पार्वती का चौथा अवतार, विष्णु अवतार, वामन अवतार, समुद्र मंथन, अर्जुन का पानी लेकर चलन और अभिमन्यु चक्रव्यू जैसी कई घटनाओं को नक्काशी में उकेरा गया है. पुजारी बलिराम के अनुसार, ये मंदिर पूरे साल खुला रहता है. यहां हर दिन मां मृकुला की पूजा अर्चना करने के बाद ही पुजारी जल ग्रहण कर सकते है. बिना मां की पूजा किए इन्हें भोजन या पेय निषेध है.
सिर्फ ये देख सकते हैं इसे
मंदिर ने पुजारी बताते है कि मां मृकुला की मूर्ति के पीछे वो खप्पर रखा गया है जिसमें मां काली ने महिषासुर के रक्त को एकत्रित कर उसका वध करने के लिए ग्रहण किया था. इस खप्पर को मूर्ति के पीछे ही छिपा कर रखा गया है. घाटी में मान्यता है कि इस खप्पर को देखने से लोग अंधे हो जाते हैं. इस खप्पर को देखने की अनुमति किसी को भी नहीं है. हालांकि साल में एक दिन मंदिर के सिर्फ एक ही पुजारी को मां इसे देखने की अनुमति देती हैं. वही इस खप्पर को मंदिर से बाहर निकलते हैं. शाम के समय मां मृकुला देवी मंदिर के पुजारी खप्पर की पूजा-अर्चना की रस्म अदायगी अकेले करते हैं. इसे गंगाजल, गौमूत्र और केसर डालकर धोया जाता है. बाद में इस खप्पर को इष्टदेवता के स्थान पर लेकर जाया जाता है. जहां अगले दिन इस ढके हुए खप्पर को गांव की सभी लड़कियों और बड़ी छोटी उम्र की महिलाएं धूप करके पूजा करती हैं. बाद में इस खप्पर को इसके मूल स्थान रख दिया जाता है.
नहीं बोल सकते ये बात
इस मंदिर के अंदर द्वारपाल के रूप में भैरव और बजरंगबली मौजूद हैं. माना जाता है कि मंदिर में पूजा अर्चना के बाद यहां ‘चलो यहां से चलते हैं’ नहीं बोल सकते है. ऐसा कहने से ये दोनों द्वारपाल भी साथ चल पड़ते है. जिस कारण लोगों के परिवार को मुसीबत भी झेलती पड़ सकती है. ऐसे में यहां से पूजा अर्चना करके श्रद्धालुओं को चुपचाप निकलने की सलाह दी जाती है.
[ad_2]
Source link