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Landour Tourist Place: हममें से कई लोग मसूरी जाते हैं लेकिन यहां से सिर्फ 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बेहद शांत और देवदार के दरख्तों से निकलने वाली सर्द हवाओं वाली जगह लैढौर के बारे में शायद ही कोई जानता होगा. यह शहर शांति, शीतलता और कई कहानियों का संगम है. मशहूर अंग्रेजी कहानीकार रस्किन बॉन्ड सदियों से यहीं रहते हैं. यहां के लाल टिब्बों की कहानी उन्होंने पूरी दुनिया को बताई है. लैंढ़ौर कभी उत्तराखंड के मसूरी का एक शांत इलाका था. यह सर्द हवाओं और छोटे दिनों में और भी शांत हो जाता था लेकिन अब रील्स बनाने वालों की यहां बारहों महीने कमी नहीं रहती. सोशल मीडिया पर यह अत्यंत जरूरी टूरिस्ट प्लेस में से एक बन गया है. लेकिन यह की शांति आज भी उसी तरह है. ऐसे में यदि आप शहर के कोलाहल से तंग आ चुके हैं तो आपके लिए लैढौर बेहद सुकून देने वाली जगहें साबित हो सकती है.

लैढौर में देखने वाली जगह

लाल टिब्बा व्यू पॉइंट- यूं तो लैढौर में कहीं भी रूक जाएं आपको मानसिक सुकून देगा. लैढौर का लाल टिब्बा काफी मशहूर है. लाल का मतलब लाल और टिब्बा का मतलब पहाड़ी. यानी लाल दिखने वाली पहाड़ी. इस नाम से इसलिए जाना जाता है क्योंकि यहां की मिट्टी लाल-भूरी रंग की है. यह लैंढौर शहर का सबसे ऊंचा स्थान है. यहां से कई प्रसिद्ध हिमालयी चोटियां दिखाई देती हैं. लाल टिब्बा के दो कैफे की छत पर दूरबीनें लगी हैं और वे एक व्यक्ति से 50 रुपये लेकर हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों और दूर के गांवों को देखने का मौका देते हैं. लाल टिब्बा से नजारा अद्भुत होता है और यहां से चार धाम की पूजा भी की जा सकती है. सूर्योदय या सूर्यास्त के समय लाल टिब्बा जाना लैंढौर में सबसे अच्छा अनुभव होता है.यहां के कैफे मशहूर हैं.

Landour

चार दुकान-चार दुकान नाम से ही पता चलता है कि यह लैंडौर में चार दुकानों की एक पंक्ति है. चार दुकान लैंडौर लैंग्वेज स्कूल में पढ़ने वाले विदेशी छात्रों की घरेलू जरूरतों को पूरा करती है. यहां की सारी दुकानें खाने-पीने की चीजें और पहाड़ी स्वाद वाले स्नैक्स व पेय जैसे गरम चाय-कॉफी, मैगी, पकौड़े, पराठे, पास्ता और बुन ऑमलेट्स देती हैं. प्रसिद्ध अनिल्स कैफे और टिप टॉप टी शॉप चार दुकान में 50 से ज्यादा वर्षों से हैं और ये अपने यहां आए सेलिब्रिटीज़ पर गर्व करते हैं.

सेंट पॉल्स चर्च-सेंट पॉल्स चर्च एक पुराना कैंटोनमेंट चर्च है जो 1840 में बना था. यह चार दुकान के बिल्कुल पास है. यह पहला चर्च था जहां बंदूकें अंदर लाई जा सकती थीं. ब्रिटिश सैनिक प्रार्थना के दौरान अपने बंदूकों के चोरी होने की शिकायत करते थे. इसलिए 1857 में सेंट पॉल्स के लकड़ी के बैंचों में निशान बनाए गए जहां सैनिक अपने बंदूकें रख कर पूजा करते थे. ये निशान आज भी वहां मौजूद हैं. चर्च का परिसर बहुत शांत और सुकून भरा है, और आसपास के ऊंचे देवदार के पेड़ों की ताजी खुशबू वहां महसूस होती है. पीले रंग से रंगा चर्च नीले आसमान और हरे पेड़ों के बीच शानदार दिखता है. सेंट पॉल्स चर्च लैंडौर में शांति और एकांत के लिए सबसे अच्छा स्थान है.

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रसकिन बॉन्ड का घर-रसकिन बॉन्ड ब्रिटिश वंश के भारतीय लेखक हैं जो लैंडौर में रहते हैं. वे बाल साहित्य के लिए प्रसिद्ध हैं. उनका घर अपर चुकार से नीचे एक तीव्र ढलान पर स्थित है. उन्हें उनके घर के आसपास देखा जाता है, इसलिए लोग उनसे मिलने की कोशिश करते हैं. हालांकि वे 90 साल के हो चुके हैं और सीमित लोगों से मिलते हैं. उनका घर सुंदर और रंगीन बीएनबी डोमा इन के पास है.

लैंडौर की विंटर लाइन-विंटर लाइन एक दुर्लभ प्राकृतिक घटना है जो खास परिस्थितियों में तब बनती है जब गर्म हवा ठंडी हवा के नीचे फंस जाती है. इसे दुनिया में केवल दो जगहों पर देखा जा सकता है स्विट्जरलैंड और मसूरी. यह अद्भुत है! लैंडौर में एक सूर्यास्त के समय विंटर लाइन देखने में सफल हो सकते हैं. हालांकि यह हमेशा नहीं होता. जब पश्चिमी आकाश पीले, लाल और बैंगनी रंगों में रंग जाता है तब यह दिखाई देता है.

जबर्खेत नेचर रिजर्व-जबर्खेत नेचर रिजर्व भारत का पहला निजी रिजर्व है जो जबर्खेत गांव में स्थित है और प्रकृति प्रेमियों के लिए लैंढौर का सबसे अच्छा स्थान है. यह लैंडौर से 5 किलोमीटर दूर है. यहां कई तरह के वन्यजीव रहते हैं जैसे पक्षी, स्तनधारी और कीड़े-मकोड़े. प्रबंधन यहां गाइडेड वॉक का आयोजन करता है. यह 2-3 घंटे का ट्रेक होता है जिसमें कोई बाघ, भालू, साही, लंगूर और हिरन देख सकता है. दुर्भाग्य से हमें वन्यजीव नहीं दिखे लेकिन उनके मोशन-सेंसर कैमरों में कुछ देखे.

मसूरी से लैढौर कैसे पहुंचे
लैढौर मसूरी से महज साढ़े तीन किलोमीटर की दूरी पर है. लैंडौर मसूरी बाजार से चार दुकान इलाके तक एक सपनों जैसी सैर है जहां उत्साही लोग पैदल भी जा सकते हैं. पैदल जाने में 40 मिनट से एक घंटे तक का वक्त लग सकता है. इस यात्रा के दौरान आपको अद्भुत आनंद की प्राप्ति होगी. यह रास्ता आपको देवदार के जंगलों से होकर घुमावदार पगडंडी पर ले जाएगा जहां से निकलते हुए पहाड़ों की खुशबू और चारों ओर की खूबसूरत नज़ारा आप कभी नहीं भूल पाएंगे.

लैढौर का इतिहास
लैढौर को अंग्रेजों ने बसाया था. पहली बार यह 1825 में अंग्रेज सेना के एक कैप्टन फ्रेडरिक ने यहां एक घर बनवाया था. फ्रेडरिक ने ही मसूरी की खोज की थी. वे पहले गोरखा बटालियन के कमांडेंट भी थे जिसे ब्रिटिशों ने गोरखा युद्ध में जीत के बाद बनाया था. यह घर गर्मियों में उनके परिवार के लिए ठहरने की जगह हुआ करता था. 1827 में इसे ब्रिटिश आमी के लिए कई घर बनवाए गए. यह जगह सेना के इलाज और आराम के लिए उपयोग की जाने लगी. यहां अस्पताल भी बनाए गए. इसलिए लैंडौर का बड़ा हिस्सा छावनी क्षेत्र है. आज यहां रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट (ITM) है. ब्रिटिश अस्पताल 1947 के बाद बंद हो गया. 1857 के बाद अंग्रेजों के खिलाफ उबल रहे गुस्से के कारण कुछ अंग्रेज परिवार यहां आकर बस गए. यहां अमेरिकी मिशनरी भी आए. कई पीढ़ियों तक अमेरिकी मिशनरियों के बच्चे वुडस्टॉक स्कूल में पढ़े या लैंडौर में जन्मे. हाल के वर्षों में उनके वंशज इस जगह को देखने आ रहे हैं. आजादी के बाद यह जगह इंडियन आर्मी की हो गई लेकिन कई अंग्रेज परिवार जो आजादी के बाद यहां रह गए उनमें से कुछ आज भी हैं.

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