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किसी भी संबंध का आरंभ आकर्षण से होता है। आप जिससे आकर्षित होते हैं यदि वह वस्तु या व्यक्ति आपको आसानी से मिल जाए तो आकर्षण समाप्त हो जाता है। लेकिन यदि इसे पाना थोड़ा कठिन हो तो आपके मन में इसके प्रति प्रेम उत्पन्न हो जाता है। जब आप प्रेम में पड़ते हैं तो थोड़े ही समय बाद आप संबंधों में और अधिक प्रेम की मांग करना आरंभ कर देते हैं। लेकिन जब भी आप प्रेम में माँग करने लगते हैं तो प्रेम कम हो जाता है, ख़ुशी कम होने लगती है और आप कहते हैं, ‘ओह, मैंने इस संबंध में आकर गलती कर दी है।’ फिर उस संबंध से बाहर निकलने के लिए संघर्ष और दुख होता है। कई बार आप एक संबंध से बाहर निकलने के बाद किसी दूसरे संबंध में प्रवेश करते हैं और वही कहानी फिर से शुरू हो जाती है।
संबंधों में केवल आकर्षण की नहीं बल्कि प्रेम की भी आवश्यकता है। आकर्षण में आक्रामकता है; प्रेम में समर्पण होता है। प्रेम और आकर्षण में यही अंतर है। हालाँकि आकर्षण पहला कदम होता है लेकिन आप पहले कदम पर अधिक देर तक टिके नहीं रह सकते। आपको अगले कदम पर जाना होगा, यही प्रेम है।
किसी भी संबंध में तीन चीजें आवश्यक हैं: सही धारणा, सही अवलोकन और सही अभिव्यक्ति। प्रायः लोग कहते हैं कि उन्हें कोई नहीं समझता। यह कहने के बजाय कि कोई आपको समझता नहीं, आप कह सकते हैं कि आपने अपने आपको ठीक से अभिव्यक्त नहीं किया है। उदाहरण के लिए यदि आप स्पेन के किसी व्यक्ति से रूसी भाषा में बात करते हैं तो निश्चित रूप से वे आपकी बात समझ नहीं पाएंगे। सही धारणा तब हो सकती है जब आप स्वयं को दूसरे व्यक्ति के स्थान पर रखकर उस परिस्थिति को देखें। हो सकता है कि आपने सही समझा हो लेकिन आपकी प्रतिक्रिया कैसी होती है? आप अपने भीतर कैसा अनुभव करते हैं? इस प्रकार से अपने मन का अवलोकन करना दूसरा महत्त्वपूर्ण पहलू है। आपके भीतर क्या संवेदना है और आपकी प्रवृत्ति कैसी है, इसका अवलोकन भी बहुत आवश्यक है। तो संबंधों में घनिष्ठता बनाये रखने के लिए सबसे पहले दूसरे व्यक्ति की धारणा को समझें, उसके बाद स्वयं का अवलोकन करें और फिर खुद को सही तरीके से अभिव्यक्त करना बहुत आवश्यक है।
संपूर्ण जीवन केवल इन तीन चीजों पर आधारित है: धारणा, अवलोकन और अभिव्यक्ति। आपकी हर गलती वास्तव में गलती नहीं है; यह जीवन के तीन महत्त्वपूर्ण पहलुओं को सीखने की प्रक्रिया है। हमें अपनी धारणा को विस्तृत करने की आवश्यकता है। किसी को बस बाहर से ही न देखें । यदि कोई व्यक्ति क्रोधी स्वभाव का है तो हम उसके व्यवहार के लिए उस व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराते हैं लेकिन यदि हम व्यापक दृष्टिकोण से देखें तो कई पहलू सामने आएंगे जैसे कि वह व्यक्ति किसी विशेष कारण से क्रोधित है और यही उसके व्यवहार में अभिव्यक्त हो रहा है। जब हमारी धारणा का दायरा बढ़ता है तब हम किसी पर न केवल कोई आरोप लगाने से बचेंगे बल्कि उन्हें स्वीकार करेंगे और पूरी परिस्थिति को एक विशाल दृष्टिकोण से देख पायेंगे । इस तरह से व्यापक धारणा से हमें अपने सबंधों को बेहतर बनाने में सहायता मिलेगी।
संबंधों को बेहतर बनाने की दिशा में दूसरा पहलू है- साझा करना और इसके साथ ही दूसरों को भी साझा करने की अनुमति देना। मान लीजिए कि आप ही सब कुछ कर रहे हैं लेकिन आप दूसरे व्यक्ति को बदले में कुछ नहीं करने देते, तो आप उन्हें उनके आत्म-मूल्य से दूर ले जा रहे हैं। कभी-कभी लोग कहते हैं, “अरे देखो, मैंने इतना कुछ किया लेकिन फिर भी वह व्यक्ति मुझसे प्रेम नहीं करता।” क्यों? क्योंकि वे असहज अनुभव करते हैं। प्रेम तब होता है जब आदान-प्रदान होता है। और ऐसा तभी हो सकता है जब आप उन्हें भी आपके लिए कुछ करने का अवसर दें। इसके लिए थोड़ी कुशलता की आवश्यकता है। हमें दूसरे से भी बिना माँगे योगदान कराने में कुशल होना होगा। एक संबंध में देखें कि दूसरा भी आपके जीवन में योगदान देता है ताकि वे पूरी तरह से बेकार अनुभव न करें। प्रेम के खिलने के लिए आत्म-मूल्य आवश्यक है। यह दूसरा महत्वपूर्ण रहस्य है।
संबंध का तीसरा पहलू है पर्याप्त जगह देना। जब आप किसी से प्रेम करते हैं, तो आप उन्हें सांस लेने की भी जगह नहीं देते और यह घुटन भरा हो सकता है। घुटन प्रेम को समाप्त कर देती है। एक दूसरे की जगहों का सम्मान करें। कुछ समय छुट्टी लें। प्रेम को पनपने के लिए लालसा की आवश्यकता होती है। इसीलिए प्राचीन समय में पत्नियों को साल में एक महीने के लिए उनकी माँ के पास भेजने की प्रथा थी। उस एक महीने में पति और पत्नी के भीतर लालसा उत्पन्न होती थी और उनके भीतर एक दूसरे के प्रति प्रेम बढ़ता था । यदि आप अपने संबंध में लालसा को अनुमति नहीं देते हैं तो प्रेम नहीं बढ़ता है और आकर्षण खो जाता है।
और चौथा पहलू यह है कि संबंध को मुख्य भोजन के रूप में नहीं बल्कि एक भोजन के अंत में खाए जाने वाले मीठे व्यंजन के रूप में माना जाना चाहिए । यदि आपका जीवन किसी एक लक्ष्य पर केंद्रित है, तो आप उस दिशा में आगे बढ़ें और आपका रिश्ता साथ-साथ आगे बढ़ता रहेगा । यदि आपका सारा ध्यान सिर्फ अपने संबंध पर ही है तो यह काम नहीं करेगा। इसके साथ ही अपने जीवन में कोई न कोई सेवा करने का लक्ष्य रखें। साझा करने और सेवा करने से आपकी प्रेम करने और स्वीकार करने की क्षमता बढ़ेगी। यदि आपने सेवा को एक लक्ष्य के रूप में रखा है और दोनों मिलकर उस दिशा में आगे बढ़ते हैं तो कोई समस्या नहीं होगी। एक सफल संबंध के लिए सेवा एक आवश्यक घटक है।
गुरुदेव श्री श्री रविशंकर
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर एक मानवतावादी और आध्यात्मिक गुरु हैं। उन्होंने आर्ट ऑफ लिविंग संस्था की स्थापना की है, जो 180 देशों में सेवारत है। यह संस्था अपनी अनूठी श्वास तकनीकों और माइंड मैनेजमेंट के साधनों के माध्यम से लोगों को सशक्त बनाने के लिए जानी जाती है।
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