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Aamir Khan Rang De Basanti: आमिर खान ने हाल ही में अपनी फिल्म ‘रंग दे बसंती’ के ओरिजनल क्लाइमैक्स को लेकर बात की. उन्होंने बताया कि उनकी वो पहली फिल्म है, जिसने स्पष्ट रूप से कहा कि हिंसा से किसी देश की समस्याओ…और पढ़ें

आमिर खान की फिल्म ‘रंग दे बसंती’ साल 2006 में रिलीज हुई थी.
हाइलाइट्स
- आमिर खान ने ‘रंग दे बसंती’ का बदल दिया था क्लाइमैक्स.
- सालों बाद आमिर खान ने बताई वजह.
- बॉक्स ऑफिस पर कामयाब हुई थी ‘रंग दे बसंती’.
नई दिल्ली. सुपरस्टार आमिर खान की फिल्म ‘रंग दे बसंती’ साल 2006 में रिलीज हुई थी. इसमें उन्होंने सिद्धार्थ, शरमन जोशी, कुणाल कपूर और सोहा अली खान के साथ स्क्रीन शेयर किया था. हाल ही में आमिर खान ने ‘रंग दे बसंती’ को लेकर बात की. उन्होंने बताया कि फिल्म का असली मैसेज है कि हिंसा से कुछ हासिल नहीं होता और समाज में बदलाव लाने के लिए शांति से सिस्टम के भीतर काम करना चाहिए. इस मूवी का डायरेक्शन राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने किया था.
यूट्यूब चैनल जस्ट टू फिल्मी को दिए इंटरव्यू में आमिर खान ने बताया कि ‘रंग दे बसंती’ का ओरिजनल क्लाइमैक्स और जो दर्शकों ने देखा, उसमें बहुत अंतर था. उन्होंने कहा, ‘ओरिजनल स्क्रिप्ट में मिनिस्टर को गोली मारने के बाद सभी तितर-बितर हो जाते हैं, क्योंकि वे गिरफ्तार नहीं होना चाहते. इसलिए वे भाग जाते हैं. आखिर में उनमें से हर एक पकड़ा और फिर मेरा जाता है. मेरा सवाल था कि अगर जब उन्हें पता है कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया है, उनका मानना है कि उन्होंने सब सही किया है, तो फिर वे क्यों भाग रहे हैं? उन्हें भागना नहीं चाहिए.’
आमिर खान ने बदल दिया था क्लाइमैक्स
आमिर खान ने कहा, ‘फाइनल वर्जन में मंत्री की हत्या के बाद सभी इकट्ठा होते हैं और उन्हें पता चलता है कि उनकी योजना काम नहीं आई, क्योंकि मंत्री मरने के बाद हीरो बन गया है. उन्होंने बताया, ‘फिर उनके बीच झगड़ा होता है और सभी रेडियो स्टेशन जाते हैं. उन्हें लगता है कि लोगों से बात करने की जरूरत है. जैसे भगत सिंह ने अपने समय में किया था, वे रेडियो के माध्यम से करते हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात, वे समझाते हैं कि उन्होंने भी सोचा था कि हिंसा ही समाधान है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है. यह पहली फिल्म है, जो स्पष्ट रूप से बताती है कि हिंसा समाधान नहीं है.’
‘रंग दे बसंती फिल्म से दी खास सीख
‘रंग दे बसंती’ फिल्म का स्पेशल मैसेज समझाते हुए आमिर ने कहा, ‘कोई भी देश परफेक्ट नहीं होता. आपको उसे परफेक्ट बनाना पड़ता है. बाहर के लोग आकर आपके देश की गंदगी को साफ नहीं करेंगे, आपको खुद अपने हाथ से गंदगी की सफाई करनी होगी. सिस्टम का हिस्सा बनें और उसे अंदर से बदलें, यही फिल्म का मुख्य विचार था.’
आमिर खान का था आइडिया
आमिर ने बताया कि रेडियो स्टेशन वाला सीन एक कहानी से प्रेरित था, जो उन्होंने कई साल पहले अपने के लिए लिखी थी. उन्होंने बताया, ‘कहानी का क्लाइमैक्स टीवी स्टेशन में था. वो एक आइडिया था. मैंने मेहरा (राकेश ओमप्रकाश मेहरा) से कहा कि हम लोग उस आइडिया को इसमें (रंग दे बसंती) डाल देते हैं. हमने क्लाइमैक्स को फिर से लिखा और इस बार सभी भागने के बजाय रेडियो स्टेशन पहुंचते हैं और वहां पर उनकी मौत होती है, लेकिन मरने से पहले वे अपनी बात कह जाते हैं.’
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