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1975 से सही समय बताता आ रहा है बरेली का घंटाघर, जानिए क्या है इसका इतिहास

बरेली: नाथनगर बरेली को जो लंबे समय से वक्त बता रहा है वह है बरेली का घंटाघर और जिस जगह पर यह घंटा घर बना है. वह पहले कुतुब खाने के नाम से जानी जाती था. इस घंटाघर का निर्माण 1975 में एक प्राकृतिक आपदा के कारण हुआ था. बता दें कि इससे पहले इस जगह को कुतुब खाना कहा जाता था. जहां किताबों की बड़ी सी लाइब्रेरी बनी हुई थी. मगर एक दिन वहां आकाश से बिजली गिरी जिससे वह लाइब्रेरी तहस-नहस हो गई. हालांकि, कुछ समय बाद वहां घंटाघर बनवा दिया गया. जिसके नवीनीकरण के बाद अब ये घंटाघर और भी अधिक बेहतर लगता है और अब यह पूरे बरेली शहर को समय बताता है.

दरअसल, जहां अभी घंटाघर बना है वहां पहले एक कुतुबखाना यानी किताबों की लाइब्रेरी हुआ करती थी, जहां एक बड़ा सा चबूतरा था और उस चबूतरे एक बड़ी बिल्डिंग भी थी जिसके नीचे कई दुकानें भी बसाई गई थीं और उस लाइब्रेरी में लोग किताबें पढ़ने भी आते थे. फिर अचानक 1965 में आकाशीय बिजली गिरी जिसके कारण वहां बनी बिल्डिंग पूरी तरह से ध्वस्त हो गई. उसके बाद वहां की किताबें हटा दी गई और कुछ समय बाद वहां घंटाघर बनवा दिया गया.

वहीं इस पर बरेली के वरिष्ठ पत्रकार एवं इतिहासकार डॉ राजेश कुमार शर्मा ने लोकल 18 से खास बातचीत के दौरान बताया कि कुतुब खाना तो बरेली की धड़कन है और यह शहर की धरोहर भी है. कुतुब खाने की जगह पर बना यह घंटाघर अब टंकारे बजाकर बरेली वासियों को समय बता रहा है. उस समय इस घंटा घर की बात अलग ही थी और जब नगर निगम ने यहां नवीकरण कराया तो घंटा घर की सुंदरता को और निखार दिया. घंटाघर सभी को समय बताता है और यहां काफी लोग आते जाते हैं. यह घंटा घर अपने आप में एक ऐतिहासिक है. जैसे, अंग्रेजों के जमाने में घंटाघर हुआ करते थे वैसे ही हमारे शहर बरेली में भी एक घंटा घर है. हालांकि, कुतुब खाना यानी लाइब्रेरी वहां नहीं रही, लेकिन घंटाघर अभी भी अपने पूरे रुआब से खड़ा है.

FIRST PUBLISHED : January 8, 2025, 10:33 IST

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