[ad_1]
भरतपुर: राजस्थान के भरतपुर से एक बड़ा ही अजीबोगरीब मामला सामने आया है. यहां साइबर ठगी इस तरीके से की गई कि पुलिस और साइबर एजेंसियों को चौंका दिया. ठगी की रकम करीब 400 करोड़ रुपये बताई जा रही है. पुलिस जांच पड़ताल करते हुए एक कमरे में पहुंची, जहां पंखा तक नहीं लगा था. पत्नी-पत्नी चटाई पर लेटे हुए थे और पेशे से मजदूर थे. मगर, हैरानी की बात यह थी कि इनके नाम से करोड़ों रुपये की कंपनी थी, तब भी बिना पंखे और बेड वाले कमरे में सोए हुए थे. पूछताछ में सामने आया कि दोनों अपना नाम तक लिख सकते हैं. फिर क्या था पुलिस के होश उड़ गए और ठगी का दूसरा पहलू समझ आया.
मामा-भांजे मास्टरमाइंड
इस ठगी का मास्टरमाइंड कोई अनपढ़ नहीं, बल्कि एमबीए पास रविंद्र सिंह और उसका सॉफ्टवेयर इंजीनियर भांजा शशिकांत निकला. हैरानी की बात यह रही कि जिन लोगों के नाम पर करोड़ों की कंपनियां रजिस्टर्ड थीं, वो दिल्ली के एक छोटे से कमरे में रहने वाला मजदूर दंपती निकला. भरतपुर पुलिस ने जब दिल्ली के मोहन गार्डन में एक कंपनी के कागजी मालिक की लोकेशन ट्रेस की, तो वहां एक कमरे में दिनेश और कुमकुम सिंह नाम के पति-पत्नी जमीन पर चटाई पर सोते मिले. न पंखा था, न फर्नीचर. पूछताछ में पता चला कि दोनों मजदूरी कर गुजारा करते हैं और इतने अनपढ़ हैं कि अपना नाम तक नहीं लिख सकते.
बार-बार घर आती थी भांजी, करती थी ये काम… मामा को पता चली सच्चाई तो उड़ गए होश
गरीबों के नाम पर खुलती थीं करोड़ों की कंपनियां
आईजी भरतपुर रेंज राहुल प्रकाश के अनुसार, मास्टरमाइंड रविंद्र गरीब और अनपढ़ लोगों को बहला-फुसलाकर उनके दस्तावेज लेता और उनके नाम पर फर्जी कंपनियां खोलता. कंपनी रजिस्ट्रेशन से लेकर बैंक खाते, पैन और जीएसटी तक सबकुछ उनके नाम से होता, लेकिन संचालन खुद रविंद्र और उसका भांजा करते थे. बदले में नाम के मालिकों को महीने की मामूली सैलरी दी जाती थी.
सॉफ्टवेयर इंजीनियर भांजा करता था टेक्निकल ऑपरेशन
रविंद्र का भांजा शशिकांत, जो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है, इस पूरे नेटवर्क की तकनीकी व्यवस्था संभालता था. फिलहाल वह फरार है. पुलिस ने रविंद्र, दिनेश और कुमकुम को गिरफ्तार कर लिया है. पूछताछ में पता चला है कि रविंद्र ने करीब 100 से ज्यादा फर्जी कंपनियां सिर्फ एक साल में रजिस्टर्ड करवाई थीं.
सुहागरात का सपना हुआ चूर-चूर, दुल्हन भी रहने लगी दूर-दूर, पहले तो सबकुछ ले भागी, फिर देने लगी धमकी
ऑनलाइन गेमिंग और इन्वेस्टमेंट ऐप्स से होती थी ठगी
इस गैंग ने फर्जी गेमिंग और इन्वेस्टमेंट ऐप्स के जरिए देशभर के 4000 से ज्यादा लोगों को ठगा. ये लोग पहले ऐप्स के जरिए मामूली रिटर्न देकर विश्वास बनाते, फिर बड़ी रकम मंगवाकर पैसा हड़प लेते. जिनके पास पैसा नहीं होता, उन्हें रविंद्र खुद “स्पॉन्सर” करता और उनकी बैंक डिटेल्स अपने पास रख लेता.
फर्जी सिम और डिजिटल पेमेंट प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल
गैंग ने ठगी के लिए फिनो पेमेंट्स, फोनपे, ट्राइपे, एबुनडान्स पे, पेवाइज जैसे प्लेटफॉर्म पर फर्जी मर्चेंट अकाउंट्स बनाए. साथ ही फर्जी सिम कार्ड्स से काम किया जाता था ताकि पहचान न हो सके. इस पूरे नेटवर्क को सीए और टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट्स की मदद से चलाया जा रहा था.
केंद्रीय एजेंसी की मदद से खुला मामला
केंद्रीय साइबर एजेंसी आईवाईसी की मदद से भरतपुर पुलिस ने इस ठगी का भंडाफोड़ किया. डायरेक्टर राजेश कुमार की तकनीकी सहायता से जैसे-जैसे ट्रांजैक्शन की जांच हुई, पूरा रैकेट सामने आ गया. फिलहाल पुलिस ने चार राज्यों में रजिस्टर्ड फर्जी कंपनियों के खाते फ्रीज कर दिए हैं, जिनमें करीब 4 करोड़ रुपये जमा मिले हैं. जांच अभी जारी है और ठगी की रकम 1000 करोड़ तक पहुंचने की आशंका जताई जा रही है.
[ad_2]
Source link