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Agriculture news: विशेषज्ञों का मानना है कि बेला की खेती के लिए हल्की दोमट मिट्टी और गर्म जलवायु सबसे उपयुक्त होती है. यह पौधा कम पानी में भी आसानी से तैयार हो जाता है. किसान अगर एक बीघे में लगभग 400 से 500 पौधे लगाते हैं तो दो से तीन साल के भीतर बड़े पैमाने पर फूल की पैदावार मिलनी शुरू हो जाती है.

कन्नौज इत्र नगरी के रूप में दुनियाभर में अपनी खास पहचान रखता है. यहां इत्र उद्योग से जुड़ी कच्ची सामग्री की भारी मांग रहती है, इन्हीं में से एक है बेला का फूल, जिसकी खुशबू इत्र और परफ्यूम बनाने में सबसे अधिक उपयोग की जाती है. यही वजह है कि कन्नौज में बेला की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है.अब किसान इसे कम लागत में अपनाकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि बेला की खेती के लिए हल्की दोमट मिट्टी और गर्म जलवायु सबसे उपयुक्त होती है. यह पौधा कम पानी में भी आसानी से तैयार हो जाता है. किसान अगर एक बीघे में लगभग 400 से 500 पौधे लगाते हैं तो दो से तीन साल के भीतर बड़े पैमाने पर फूल की पैदावार मिलनी शुरू हो जाती है. एक बार पौधा तैयार होने के बाद 8 से 10 साल तक लगातार फूल की तुड़ाई होती रहती है.

कम लागत में अच्छा मुनाफा
खेती में लागत भी बहुत अधिक नहीं आती, सिंचाई और खाद का सामान्य खर्च ही पर्याप्त होता है. स्थानीय स्तर पर आसानी से उपलब्ध जैविक खाद का उपयोग कर किसान लागत और भी कम कर सकते हैं. फूलों की तुड़ाई सुबह और शाम दोनों समय की जाती है, जिससे रोजगार के अवसर भी बढ़ते हैं. कन्नौज के इत्र कारोबारी बताते हैं कि बेला के फूल की मांग हर मौसम में बनी रहती है. फूल सीधे इत्र निर्माताओं को बेचे जा सकते हैं, साथ ही फूलों से गजरे और माला बनाकर स्थानीय बाजारों में भी अच्छा दाम मिलता है.

क्या बोले कृषि वैज्ञानिक
कृषि वैज्ञानिक अमर सिंह बताते है कि किसान यदि समूह बनाकर खेती करें तो उन्हें अधिक लाभ होगा, सामूहिक पैमाने पर खेती करने से फूलों की सही कीमत मिलती है और बिचौलियों पर निर्भरता भी घटती है, इस तरह, कम लागत और अधिक पैदावार वाली बेला की खेती कन्नौज के किसानों के लिए लाभकारी साबित हो रही है.

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