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The unique mystery of Chitrakoot: शरद पूर्णिमा की रात को कामतानाथ मंदिर परिसर के पास श्रद्धालु शाम से ही अपने-अपने बर्तनों में खीर बनाना शुरू कर देते हैं. जैसे-जैसे रात गहराती है, लोग अपनी खीर को खुले आसमान के नीचे रखते हैं ताकि उस पर चंद्रमा की किरणें पड़ सकें.और देर रात्रि में इनको खीर में मिलाकर दवाई खिलाई जाती है.
चित्रकूट. आपने अब तक दमा और श्वास जैसी बीमारियों के लिए डॉक्टरों और दवाओं से इलाज के बारे में तो बहुत सुना होगा, लेकिन उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में इस बीमारी के उपचार का एक अनोखा और धार्मिक तरीका आज भी कायम है. शरद पूर्णिमा की रात को यहां हजारों श्रद्धालु कामतानाथ मंदिर परिसर में इकट्ठा होते हैं और चांदनी रात में खीर पकाकर उसका सेवन करते हैं, जिसे दमा और सांस के रोगों का लोक-उपचार माना जाता है. हर साल शरद पूर्णिमा की रात को चित्रकूट के कामतानाथ मंदिर के पास श्रद्धालु शाम से ही अपने-अपने बर्तनों में खीर बनाना शुरू कर देते हैं. जैसे-जैसे रात गहराती है, वे अपनी खीर को खुले आसमान के नीचे रख देते हैं ताकि उस पर चांद की किरणें पड़ सकें. धार्मिक मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होता है और उसकी किरणों में विशेष औषधीय गुण होते हैं. इन किरणों के संपर्क में आने वाली खीर अमृत तुल्य मानी जाती है, जो दमा, श्वास, सर्दी और अन्य सांस संबंधी रोगों में राहत देती है.
100 साल पुरानी परंपरा का निर्वाह आज भी जारी
यह परंपरा आज से करीब एक सदी पुरानी बताई जाती है. इसकी शुरुआत चित्रकूट के एक श्रद्धालु रसिक बिहारी ने की थी.
कहा जाता है कि रसिक बिहारी हर साल शरद पूर्णिमा की रात खीर में औषधीय तत्व मिलाकर बीमार लोगों को खिलाते थे. उनकी प्रेरणा से हीरालाल मिश्रा ने इस सेवा को आगे बढ़ाया और आज यह दायित्व रामेश्वर मिश्रा निभा रहे हैं. वे हर वर्ष शरद पूर्णिमा की रात श्रद्धालुओं की खीर में विशेष आयुर्वेदिक औषधि मिलाते हैं. यह खीर रात 12 बजे से सुबह 5 बजे तक रोगियों और श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में दी जाती है.
श्रद्धा और आस्था से जुड़ी चिकित्सा परंपरा
स्थानीय लोगों के अनुसार, यह कोई अंधविश्वास नहीं बल्कि आस्था से जुड़ी लोकचिकित्सा है. उनका मानना है कि जब खीर में प्राकृतिक औषधि और चंद्रमा की अमृत किरणें एक साथ मिलती हैं, तो यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है और सांस की नली में जमा कफ को दूर करती है. लोग मानते हैं कि इस रात प्रकृति अपने सबसे शांत और शुद्ध रूप में होती है, इसलिए इस समय में बना भोजन औषधीय शक्ति से भर जाता है.
दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु, खीर को मानते हैं अमृत
इस आयोजन में चित्रकूट के अलावा रीवा, सतना, प्रयागराज, बांदा और झांसी से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं. रीवा जिले से आए श्रद्धालु सुनील शुक्ल ने बताया, “हम हर साल शरद पूर्णिमा की रात चित्रकूट आते हैं और यहां की खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं. इस खीर में औषधीय दवा और चांदनी का अमृत एक साथ मिलता है, जिससे दमा और सांस की तकलीफ में बहुत राहत मिलती है.”
उन्होंने कहा, “आज की रात आसमान से अमृत बरसता है, इसलिए हम लोग अपनी खीर को खुले आसमान के नीचे रखते हैं ताकि वह अमृत हमारी खीर में समा सके.”
आस्था और परंपरा का संगम
शरद पूर्णिमा की रात चित्रकूट का यह दृश्य किसी आस्था के महोत्सव से कम नहीं होता. मंदिर परिसर में हजारों लोग खीर पकाते, भजन-कीर्तन करते और चाँदनी में नहाई खीर को औषधि रूप में ग्रहण करते हैं. यह परंपरा न केवल एक धार्मिक विश्वास को जीवित रखती है, बल्कि लोक संस्कृति में प्रकृति और चिकित्सा के अद्भुत मेल का प्रतीक भी है.
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