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Bareilly Crime News: नोटों की गड्डियां किस तरह से आंखों पर पर्दा डाल देती हैं. ऐसी ही एक बड़ी बानगी उत्तर प्रदेश में देखने को मिली है. जहां एक बेटा पिता के मरने के बावजूद 16 साल तक कुछ ऐसा करता रहा, जिससे अब अफ…और पढ़ें

16 साल पहले हुई थी पिता की मौत, बेटे का ऐसा ‘प्यार’ अबतक रखा जिंदा, मामला आया सामने तो अफसरों के उड़े होश

पिता की मौत के बाद भी बेटा लेता रहा पेंशन.

हाइलाइट्स

  • बेटे ने 16 साल तक मृत पिता को रखा जिंदा.
  • सरकार को 1 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.
  • नए ट्रेजरी अफसर ने घोटाले का पर्दाफाश किया.

बरेली (रामविलास सक्सेना): लोग पैसों के लिए कुछ भी कर गुजरते हैं. उन्हें न फिर इंसानियत दिखती है और न ही कुछ और. नोटों की गड्डियां किस तरह से आंखों पर पर्दा डाल देती हैं. ऐसी ही एक बड़ी बानगी उत्तर प्रदेश में देखने को मिली है. जहां एक बेटा पिता के मरने के बावजूद 16 साल तक उनकी पेंशन (Pension) निकालता रहा. उसने करीब 1 करोड़ रुपये की चपत सरकार को लगाई हैं. मामले की भनक जैसे ही अधिकारी को लगी वैसे ही उनके होश उड़ गए. आइए बताते हैं पूरा मामला…

16 साल से कर रहा था घोटाला
उत्तर प्रदेश के बरेली में एक बेटा अपने पिता की मौत के 16 साल बाद भी पेंशन लेता रहा. उसके पिता की जन्मतिथि 13 जनवरी 1919 थी. उसके हिसाब से उनकी उम्र 105 वर्ष हो चुकी थी. जिले में अब तक तैनात रहे 9 मुख्य ट्रेजरी अफसर नोटों की गड्डियों की बदौलत आंखों पर पर्दा डालें सरकारी खजाने में डकैती डालने में साथ देते रहे. भला हो नए ट्रेजरी अफसर का. जब उनके पास नोटों की गड्डियां पहुंची तो वह हैरान रह गए. उन्होंने पूछा- यह नोटों की गड्डियां कहां से आई? कोई जवाब नहीं मिला.

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नए ट्रेजरी अफसर को नई भाया अपराध
फिर क्या था नए ट्रेजरी अफसर ने तुरंत डीएम को इत्तिला दी. अब जो खुलासा हुआ वह बेहद हैरान कर देने वाला है. यहां एक बेटा अपने पिता की मौत के 16 साल बाद तक ट्रेजरी के कर्मचारियों और अधिकारियों की मिली भगत से उनकी पेंशन लेने के अपने मंसूबे में कामयाब होता रहा. पेंशन के आधे रुपये बेटा लेता था और आधे ट्रेजरी अफसर रखता था. ट्रेजरी अफसर कोई भी रहता उसका महीना और साल फिक्स रहता था. फिलहाल, अब डीएम और ट्रेजरी अफसर की जांच के बाद सरकारी रकम की वसूली के साथ ही दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए रिपोर्ट शासन को भेज दी गई है.

गौरतलब है, किसी भी जिले का कोषागार राज्य के राजकोष का एक बड़ा हिस्सा होता है. इसका जिम्मेदार इसका मुख्य ट्रेजरी अफसर होता है. मगर, जब इस राजकोष के खजाने पर डाका डालने वालों का सरगना ट्रेजरी अफसर ही बन जाए तो भला राजकोष को कैसे बचाया जा सकता.

यह है पूरा मामला
दरअसल, बरेली शहर के रहने वाले सोहनलाल शर्मा बदायूं जिले के एक सरकारी इंटर कॉलेज में प्रवक्ता थे. सोहनलाल शर्मा 90 के दशक में रिटायर होने के बाद बरेली के राजकोष से पेंशन लेते रहे. सोहनलाल शर्मा की 2008 में मौत हो गई. बस यही से फर्जीवाड़ा का खेल शुरू हो गया. सोहनलाल शर्मा का बेटा उमेश कुमार बड़ा खिलाड़ी निकला. ट्रेजरी में जिम्मेदार कर्मचारियों और बैंक अधिकारियों से सांठगांठ कर ली. अब बेटा उमेश कुमार खुद सोहनलाल शर्मा बन गया और अपने पिता की पूरी पेंशन खुद हासिल करने लगा.

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इन लोगों को मिलते थे पैसे
सरकार ने पेंशन कर्मचारियों की जांच के लिए हर साल जीवित प्रमाण पत्र दाखिल करने का कानून बनाया. उमेश इसमें भी हर साल कामयाब होता गया क्योंकि वह महीने के हिसाब से आधी पेंशन ट्रेजरी के लोगों को देता था और आधी पेंशन खुद लेता था. इसे ट्रेजरी के लोग महीना और साल के हिसाब से इकट्ठा कर एक हैवी अमाउंट मुख्य कोषाधिकारी को पहुंचा देते थे. 2008 से लेकर अब तक करीब एक करोड़ रुपये की चपत उमेश ने राजकोष को लगाई है. 2008 से लेकर अब तक बरेली मंडल के मुख्य कोषागार में 9 कोषाधिकारी आते जाते रहे. सभी को गुणा गणित के हिसाब से हिस्सा मिलता रहा. इसलिए किसी भी कोषाधिकारी ने इस गैर कानूनी काम को रोकने की हिमाकत नहीं की.

नए कोषाधिकारी का ठनका माथा
वही, नोटों की गड्डियां जब नए कोषाधिकारी शैलेश कुमार के सामने पहुंची तो उनका माथा ठनका. पूछा- यह पैसे कैसे और कहां से आए? कोषागार का कर्मचारी सकपका गया. बोला साहब ऑफिस की परंपरा है. कोषाधिकारी शैलेश ने फौरन ही जिले के डीएम को इत्तिला कर दी. अब डीएम और कोषाधिकारी की जांच के बाद पूरे मामले का पर्दाफाश हो गया. इसमें अब जिले के डीएम के आदेश के बाद कोष अधिकारी ने पेंशन को रोक दिया है. वहीं डीएम ने दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई और वसूली के लिए जांच रिपोर्ट शासन को भेज दी है. अब देखना यह है कि बरेली जिले में अपनी तैनाती के दौरान राजकोष में डाका डालने वाले दोषी कोषाधिकारियों के खिलाफ शासन कब और कितनी बड़ी कार्रवाई करता है.

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