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इटावा: उत्तर प्रदेश के इटावा में महाभारत कालीन सभ्यता की छवि झलकती है. यमुना नदी के किनारे बसे इस ऐतिहासिक शहर में हर साल दिसंबर के महीने में इटावा महोत्सव का आयोजन होता है. लेकिन इस महोत्सव की खासियत सिर्फ सांस्कृतिक कार्यक्रमों में ही नहीं, बल्कि यहां मिलने वाली खजला मिठाई में भी है.
इटावा महोत्सव में मिलने वाला खजला, स्थानीय लोगों और पर्यटकों के बीच बेहद लोकप्रिय है. करीब 100 साल से अधिक समय से यह मिठाई यहां की पहचान बनी हुई है. मीठा, नमकीन और खोए वाला खजला लोगों की जुबां पर ऐसा चढ़ा है कि महोत्सव खत्म होने के बाद भी लोग इसे याद करते हैं.
अमेरिका तक पहुंचा खजले का स्वाद
जानकारी के मुताबिक, इटावा महोत्सव में बनने वाला खजला कभी अमेरिका तक भेजा गया था. इसका शानदार स्वाद इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चित बनाता है. महोत्सव के मुख्य गेट पर लगने वाले खजले के बड़े स्टॉल इसकी लोकप्रियता का प्रमाण हैं.
कैसे बनता है खस्ता और परतदार खजला?
खजला बनाने की प्रक्रिया जितनी रोचक है, उतनी ही मेहनत और कुशलता की मांग करती है. नमकीन खजला बनाने के लिए:
आटा गूंधना: मैदे में मोयन डालकर सॉफ्ट आटा तैयार किया जाता है.
परत बनाना: आटे से पतली रोटी बेलकर उस पर घी और कॉर्नफ्लोर की परत चढ़ाई जाती है.
रोलिंग: रोटी को रोल कर छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है.
तलना: तैयार खजले को धीमी आंच पर घी में तला जाता है, जिससे यह खस्ता और परतदार बनता है.
खजले के मीठे और खोए वाले संस्करण भी उतने ही स्वादिष्ट होते हैं.
सुबह के नाश्ते में खजला का खास स्थान
खजला, खासतौर पर नमकीन खजला, सुबह चाय के साथ नाश्ते के रूप में बेहद पसंद किया जाता है. पहले सिर्फ मीठा और नमकीन खजला बनाया जाता था, लेकिन बढ़ती मांग के चलते अब खोए वाला खजला भी तैयार किया जाता है.
137 साल पुरानी परंपरा
इटावा महोत्सव का यह 137वां संस्करण 8 दिसंबर से शुरू हुआ है और यह एक माह तक चलेगा. महोत्सव में आने वाले लोग खजला को बड़े चाव से खरीदते और इसका आनंद लेते हैं. 50 साल पुरानी दुकान के मालिक राकेश यादव बताते हैं, “इटावा महोत्सव में आने वाले हर व्यक्ति की पहली पसंद खजला होती है. लोग इसे अपनी पसंद के हिसाब से चाय के साथ या ऐसे ही खाते हैं.”
इटावा महोत्सव और खजला: शहर की शान
इटावा महोत्सव न केवल सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि खजला मिठाई इसे और भी खास बनाती है. यह मिठाई स्थानीय परंपरा, स्वाद और मेहनत का प्रतीक है, जिसने इस शहर को एक अलग पहचान दी है.
FIRST PUBLISHED : December 23, 2024, 15:12 IST
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