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कानपुर: कानपुर के हाथीपुर गांव में मंगलवार को सन्नाटा पसरा था, लेकिन इस सन्नाटे के बीच कुछ शब्द गूंज रहे थे. एक चाचा के टूटे हुए दिल की आवाज, जो अपने भतीजे को खोने का गम बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे. शुभम द्विवेदी की कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों द्वारा की गई हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया है, लेकिन सबसे बड़ा आघात उसके चाचा शैलेंद्र दुबे को लगा है.
बेटे जैसा था शुभम
शैलेंद्र दुबे के लिए शुभम सिर्फ एक भतीजा नहीं, बल्कि बेटे जैसा था. कैमरे के सामने बात करते-करते वह बार-बार रुकते, उनकी आंखें भर आतीं और गला रुंध जाता. उन्होंने कांपती आवाज़ में कहा, “शुभम हमारे बड़े भाई संजय भैया का इकलौता बेटा था. हम सबने मिलकर उसे पाला था. अपने ही हाथों से खिलाया, अपने कंधों पर बिठाकर घुमाया… अब सोचता हूं, उसी बच्चे की अर्थी को कंधा देना पड़ेगा, ये तो कभी सोचा भी नहीं था.
शैलेंद्र दुबे की बातों में सिर्फ दुख नहीं, बल्कि एक अजीब सा खालीपन था, जैसे किसी ने उनके जीवन की सबसे कीमती चीज़ छीन ली हो. उन्होंने बताया कि शुभम से एक दिन पहले ही बात हुई थी. शुभम ने कहा था, चाचा, एक दिन और घूम लेंगे, फिर परसों घर आ जाएंगे. उस समय किसी को क्या पता था कि वो आखिरी बातचीत होगी.
सिर्फ 70 दिन पहले हुई थी शादी
शैलेंद्र ने बताया कि शुभम की शादी को अभी सिर्फ 70 दिन हुए थे, घर में खुशियों का माहौल था. हम सब मिलकर जश्न मना रहे थे, लेकिन अब चारों तरफ सिर्फ सन्नाटा है. ऐसा लगता है जैसे किसी ने सब कुछ लूट लिया हो.
अब कौन करेगा मुझसे मजाक
शैलेंद्र बताते हैं कि शुभम बचपन से ही बहुत प्यारा और मिलनसार था. वो सिर्फ हमारा भतीजा नहीं था, वो घर की रौनक था. मेरी हर सुबह उसकी आवाज़ से शुरू होती थी और अब तो वो आवाज़ हमेशा के लिए खामोश हो गई है. मुझे समझ नहीं आता, अब कौन मुझे छेड़ेगा, कौन मुझे परेशान करेगा, मेरा शुभम तो चला गया. वो कहते हैं, “उसकी मुस्कान, उसका अंदाज़, उसका सबके साथ घुलमिल जाना… अब वो सब यादें बनकर रह गई हैं. हमें यकीन नहीं होता कि वो अब हमारे बीच नहीं है.
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