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क्या होती है नस्य विधि?
नस्य विधि आयुर्वेद की एक पारंपरिक प्रक्रिया है जिसमें औषधीय तेल या विशेष तरल को नाक के ज़रिए शरीर के अंदर पहुंचाया जाता है. आयुर्वेद के अनुसार, नाक को मस्तिष्क का दरवाज़ा माना गया है. इसी सिद्धांत पर आधारित नस्य विधि मस्तिष्क और शरीर के ऊपरी हिस्से के रोगों में राहत देती है.
कैसे की जाती है नस्य विधि?
इस प्रक्रिया को शुरू करने से पहले मरीज़ को शांत और स्थिर अवस्था में बैठाया जाता है. फिर सिर को हल्का पीछे झुकाया जाता है ताकि नाक से डाला गया तेल आसानी से अंदर पहुंच सके. रोग और उम्र के अनुसार चिकित्सक औषधीय तेल का चयन करते हैं, जिसमें अनुतैल, तिल तेल, या ब्राह्मी घृत प्रमुख हैं. दोनों नथुनों में आमतौर पर 2 से 5 बूंद तेल डाला जाता है.
किन बीमारियों में असरदार है नस्य विधि?
नस्य विधि का उपयोग खासकर सिर, गर्दन और नाक से जुड़ी बीमारियों में किया जाता है. इससे साइनस, सिरदर्द, एलर्जी, नाक बंद रहना, खांसी-जुकाम, त्वचा संबंधी समस्याएं और बाल झड़ने जैसी परेशानियों में लाभ होता है. इसके अलावा मानसिक तनाव, बेचैनी और नींद से जुड़ी समस्याओं में भी यह कारगर है.
नस्य विधि अपनाने से पहले क्या सावधानियां बरतें?
नस्य विधि एक पारंपरिक चिकित्सा पद्धति है, लेकिन इसे कभी भी बिना विशेषज्ञ की सलाह के नहीं करना चाहिए. गलत तरीके से किया गया नस्य नुकसान पहुंचा सकता है. हर व्यक्ति की उम्र, बीमारी और शारीरिक स्थिति अलग होती है, इसलिए यह जरूरी है कि नस्य विधि का सही प्रकार केवल प्रशिक्षित आयुर्वेदाचार्य से ही तय कराया जाए.
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