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कैसे देती हैं कल्पना को पेंटिंग का रूप
करीब 20 साल की खुशी ने पेंटिंग का सफर बचपन में ही शुरू कर दिया था. लेकिन जो चीज़ उन्हें बाकी कलाकारों से अलग बनाती है, वह है उनकी सोच और पेंटिंग बनाने का तरीका. खुशी सोचती हैं कि जब कोई इंसान दुखी, खुश, गुस्से में या डरा हुआ होता है, तो उसका असर सिर्फ चेहरे पर नहीं बल्कि शरीर के अंदर, जैसे दिल-दिमाग या स्किन की परतों पर भी पड़ता है. वह इन अंदरूनी बदलावों को चेहरे की भावनाओं से जोड़ती हैं और एक पूरी पेंटिंग बना देती हैं, जो देखने वाले को सीधे जुड़ाव महसूस कराती है.
इस प्रदर्शनी की शुरुआत 18 जुलाई से हुई है और यह 24 जुलाई 2025 तक AIFACS गैलरी-A में चल रही है. पहले दिन से ही दर्शकों की अच्छी खासी भीड़ जुट रही है. दर्शकों में कलाकार, स्टूडेंट्स, आर्ट क्रिटिक और कला प्रेमी सभी शामिल हैं. खुशी की पेंटिंग्स ‘रियलिज़्म’ और ‘एब्स्ट्रैक्शन’ का ऐसा मेल हैं, जो बोलती नहीं लेकिन फिर भी दिल से बात करती हैं. हर दर्शक को उनकी पेंटिंग में कुछ न कुछ अपना दिखाई देता है, जो उसे देर तक सोचने पर मजबूर करता है.
भावनाओं की परतें उकेरती हैं, खुशी की कला
खुशी की पेंटिंग का फोकस केवल बाहरी सुंदरता नहीं बल्कि इंसान के भीतर चल रहे संघर्ष और भावनाओं को दिखाना है. उनके मुताबिक चिंता, अकेलापन, डर, आत्म-संदेह और भावनात्मक उतार-चढ़ाव जैसे पहलुओं को वह रंगों और ब्रश के ज़रिए सामने लाती हैं. यही वजह है कि लोग उनकी कलाकृतियों में खुद की ज़िंदगी की झलक पाते हैं. उनकी कला उन कहानियों को छूती है, जो आमतौर पर शब्दों में नहीं कही जातीं.
खुशी खंडेलवाल इस वक्त सिंगापुर के Lasalle College of the Arts में BA (Honours) in Fine Arts की पढ़ाई कर रही हैं. वह पहले भी ‘Everything in Between’ और ‘Crumbs’ जैसी इंटरनेशनल आर्ट एक्जीबिशन में हिस्सा ले चुकी हैं. साल 2023 में उन्होंने देहरादून के वेलहम गर्ल्स स्कूल में ‘सुरेश खन्ना ट्रॉफी’ जीतकर अपनी कला का लोहा मनवाया था. लेकिन भारत में यह उनका पहला मौका है, जब उन्होंने अपनी पेंटिंग्स को किसी आधिकारिक प्रदर्शनी में पेश किया है.
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