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Bageshwar news in hindi : आज जब बाजार में हजारों तरह की चटनियां और चटनियों की रेसिपी मौजूद हैं, उनके बीच इसने अपनी जगह बनाए रखी है. इसके बिना पहाड़ी थाली अधूरी है.
हाइलाइट्स
- भांग की चटनी बागेश्वर की सांस्कृतिक विरासत है.
- यह चटनी पाचन में सहायक और सेहत के लिए फायदेमंद है.
- भांग की चटनी खास व्यंजनों के साथ परोसी जाती है.
Bhaang Chutney Recipe/बागेश्वर. उत्तराखंड के बागेश्वर जैसे पहाड़ी इलाके अपनी खूबसूरती से दुनिया को लुभाते रहे हैं. यहां के खानपान भी अनूठे हैं, जो सदियों से आम जीवन का हिस्सा हैं. पहाड़ों के कुछ व्यंजन ऐसे हैं जो न केवल स्वादिष्ट हैं, बल्कि सेहत के लिए रामबाण माने जाते हैं. भांग की चटनी इन्हीं में से एक है. इसे आज भी ग्रामीण इलाकों में पारंपरिक तरीके से सिल-बट्टे पर पीसकर तैयार किया जाता है. भांग की चटनी ये पारंपरिक भोजनों के साथ परोसी जाती है. इसे बनाने के लिए सबसे पहले भांग के बीजों को धीमी आंच पर भून लिया जाता है, जिससे इनका स्वाद और भी निखर जाता है. फिर इसमें लहसुन की कलियां, हरी मिर्च, थोड़ा सा नींबू का रस और स्वादानुसार नमक मिलाकर सिल-बट्टे पर पीसा जाता है. इस प्रक्रिया इसकी खुशबू और स्वाद दोनों में जबरदस्त निखार आता है.
कुछ घरों में इसे और भी रोचक बनाने के लिए इसमें धनिया पत्ता, भुना हुआ टमाटर और दही भी मिलाया जाता है. यह चटनी तीखी, खट्टी और बेहद खुशबूदार होती है. भांग के बीजों में प्रोटीन, ओमेगा-3 फैटी एसिड और फाइबर पाया जाता है, जो इसे स्वास्थ्य के लिए और भी उपयोगी बनाता है. बागेश्वर के रहने वाले हरीश सोनी Local 18 से कहते हैं कि यह चटनी पारंपरिक मंडुवे की रोटी, गहत की दाल, भात और फाणू जैसे व्यंजनों के साथ परोसी जाती है. इसका तीखा स्वाद सामान्य खाने को भी लाजवाब बना देता है. पहाड़ों में जब थकान के बाद घर का बना गरम-गरम खाना और उसके साथ भांग की चटनी मिल जाए, तो भूख और स्वाद दोनों का मजा दोगुना हो जाता है.
इसके बिना थाली अधूरी
बुजुर्गों का मानना है कि भांग की चटनी पाचन में सहायक होती है और शरीर को ऊर्जावान बनाए रखने में मदद करती है. यही वजह है कि बागेश्वर समेत उत्तराखंड के कई हिस्सों में यह पारंपरिक चटनी आज भी हर रसोई का हिस्सा बनी हुई है. वर्तमान समय में जब बाजार में हजारों तरह की चटनियों की भरमार है, फिर भी पहाड़ों में इस पारंपरिक चटनी की लोकप्रियता बरकरार है. यह चटनी यहां सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि सांस्कृतिक विरासत का भी हिस्सा है. यही वजह है कि यहां आज भी जब घर में कोई पारंपरिक खाना बनता है, तो भांग की चटनी जरूर परोसी जाती है. इसके बिना पहाड़ी थाली अधूरी है.
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