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हरियाणा डीजीपी वाई पूर्ण कुमार ने 6 अक्टूबर को चंडीगढ़ में अपने निवास पर खुद की सर्विस रिवाल्वर से गोली मारकर आत्महत्या कर ली. जब सर्विस रिवाल्वर से कोई अपराध होता है तो क्या होता है. इसे किसकी जिम्मेवारी माना जाता है और कार्रवाई क्या होती है. क्या किसी की सर्विस रिवाल्वर क्या कोई दूसरा इस्तेमाल कर सकता है. इस पूरे मामले की जांच कैसे होती है.

अगर कोई पुलिस अधिकारी या सिपाही अपनी ही सर्विस रिवाल्वर से आत्महत्या कर ले, तो मामला “सामान्य आत्महत्या” नहीं माना जाता; इसे एक संवेदनशील सरकारी घटना के रूप में लिया जाता है. इसलिए इसके बाद तीन स्तर पर जांच और कार्रवाई होती है
1. कानूनी
2. विभागीय
3. मानवीय/प्रशासनिक

शुरुआती कानूनी प्रक्रिया कैसे होती है

आत्महत्या होने पर क्राइम पैनल कोड की धारा 174 के तहत “इनक्वायरी इन केस ऑफ सस्पिशियस डेथ” दर्ज होती है. यानि पुलिस इसको जांच के नतीजे आने तक संदिग्ध हत्या का ही मामला मानती है. थाने का एसएचओ या वरिष्ठ अधिकारी मौके का पंचनामा तैयार करता है.

पुलिस पंचनामा एक कानूनी दस्तावेज होता है जो पुलिस द्वारा किसी घटना स्थल पर जाकर वहां की स्थिति, मिले साक्ष्य, घटनास्थल की स्थिति और मृतक या घटना से संबंधित महत्वपूर्ण विवरणों को लिखित रूप में दर्ज किया जाता है. इसे पंचायत नामा भी कहा जाता है.

जब किसी व्यक्ति की आकस्मिक या संदिग्ध मौत होती है, तब पुलिस पांच व्यक्तियों (पंचों) की उपस्थिति में घटनास्थल का निरीक्षण करती है. उसी समय पंचनामा तैयार किया जाता है. इस प्रक्रिया में कम से कम उपनिरीक्षक स्तर का अधिकारी होना आवश्यक होता है. पंचनामा पूरा किए जाने के बाद ही शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा जाता है ताकि वैज्ञानिक आधार पर मौत के कारणों का पता लगाया जा सके. पंचनामा का उद्देश्य जांच में पारदर्शिता बनाना, साक्ष्यों को सही तरीके से दर्ज करना और भविष्य में कानूनी कार्यवाही के लिए एक मजबूत आधार तैयार करना होता है. पंचनामा सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी एक महत्वपूर्ण दस्तावेज माना गया है.

पंचनामा के बाद क्या होता है

पंचनामा के बाद घटना में इस्तेमाल हथियार, कारतूस, शव और घटनास्थल की फॉरेंसिक जांच कराई जाती है. पंचनामा के बाद ही शव को भी पोस्टमार्टम के लिए भेजा जाता है, ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि ये वाकई आत्महत्या थी या गोली किसी और ने चलाई. यदि किसी तरह के झगड़े, ड्यूटी स्ट्रेस या विवाद के संकेत हों तो यह जांच और गंभीरता से बड़े पैमाने पर की जाती है.

विभागीय प्रक्रिया क्या होती है

अगर कोई शख्स सरकारी सेवा में रहते हुए आत्महत्या करता है तो ऐसे हर मामले में एक मैजिस्ट्रियल जांच जरूरी होती है. इसमें देखा जाता ह
– क्या अधिकारी मानसिक दबाव में था
– क्या सीनियर्स ने उत्पीड़न या अनुचित व्यवहार किया
– क्या ड्यूटी-स्ट्रेस, अनुशासनात्मक दंड या पोस्टिंग कारण बने.
– क्या किसी साथी या अधिकारी की लापरवाही से यह परिस्थिति बनी.

जांच में ये भी देखा जाता है कि उस अधिकारी ने रिवाल्वर ड्यूटी के लिए ली थी या निजी रूप से रखी थी. यदि वो बिना अनुमति हथियार घर ले गया, तो नियम उल्लंघन माना जा सकता है लेकिन मृत्यु के बाद दंडात्मक कार्रवाई सामान्य तौर पर नहीं होती, सिर्फ प्रक्रिया सुधार के आदेश दिए जाते हैं.

अगर सुसाइड नोट में किसी का नाम आया हो तो …

अगर आत्महत्या करने वाले सरकारी कर्मचारी या अफसर ने किसी अफसर, सीनियर या सहकर्मी के खिलाफ सुसाइड नोट में आरोप लगाया हो या उसके इस स्थिति तक पहुंचने के लिए किसी के खिलाफ उत्पीड़न या दबाव के आरोप हों तो उनके खिलाफ धारा 306 IPC के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है. कई मामलों में सीनियर अफसर को लाइन हाजिर, ट्रांसफर या सस्पेंड भी किया जाता है, जब तक जांच पूरी नहीं होती.

जिम्मेदारी कैसे ठहराई जाती है

यह इस पर निर्भर करता है कि आत्महत्या के पीछे कौन-सी वजहें मिलीं. अगर विभागीय रिपोर्ट में आत्महत्या की वजह प्राइवेट मानी जाती है तो किसी को दोषी नहीं ठहराया जाता. लेकिन अगर सुसाइड नोट मिलने के बाद संबंधित अफसरों और सहकर्मियों पर विभागीय व आपराधिक जांच चल सकती है.

आत्महत्या करने वाले अफसर के परिवार को पेंशनलाभ मिलते हैं

सरकारी सेवा नियमों के तहत आश्रित को एक्स-ग्रेशिया मुआवज़ा और पेंशन लाभ मिलते हैं. भले ही ये आत्महत्या हो.

आत्महत्या में इस्तेमाल हथियार का क्या होता है

सबसे पहले हथियार सील कर लिया जाता है. उस रिवाल्वर को साक्ष्य के रूप में पुलिस या फॉरेंसिक टीम अपने कब्जे में लेती है. बैलिस्टिक जांच होती है ताकि ये पक्का हो सके कि गोली उसी हथियार से चली थी. जब जांच रिपोर्ट और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट क्लियर हो जाती है तो विभाग दो रास्तों में एक चुनता है-
1. अगर हथियार तकनीकी रूप से ठीक है, और उसमें कोई दिक्कत नहीं तो इसे फॉरेंसिक क्लीनिंग और री-सेफ्टी टेस्ट के बाद आर्मरी में जमा किया जाता है. बाद में यह किसी दूसरे अधिकारी को नए इश्यू नंबर के साथ फिर से जारी किया जा सकता है. हालांकि कुछ राज्य पुलिस विभाग जैसे केरल, महाराष्ट्र ऐसे हथियारों को मनोवैज्ञानिक कारणों से दोबारा इश्यू नहीं करते.

2. अगर हथियार पुराना हो या उसमें कोई दिक्कत हो तो उसे खराब घोषित कर दिया जाता है और नष्ट कर दिया जाता है. इसके लिए विभागीय डिस्पोजल बोर्ड से मंजूरी ली जाती है.

पुलिस हर सर्विस रिवाल्वर का रिकॉर्ड कैसे रखती है

पुलिस विभाग में हर सर्विस हथियार का लॉग बुक और हथियार रजिस्टर होता है. उसमें लिखा जाता है
– हथियार किसे कब जारी हुआ,
– किस तारीख को किस केस में जब्त हुआ,
– बाद में उसका क्या निपटारा हुआ।
– आत्महत्या के केस में यह प्रविष्टि स्थायी रिकॉर्ड के तौर पर रखी जाती है।

क्या ऐसे रिवाल्वर को “अशुभ” मानकर बंद कर देते हैं?

कई राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश में मानवीय संवेदनाओं के कारण आत्महत्या में इस्तेमाल हुए हथियार को “सर्विस के लिए अनुपयुक्त” घोषित कर दिया जाता है. ऐसे हथियार अक्सर पुलिस स्टेशन या मालखाना में रखे जाते हैं या खराब समझकर धातु गलाने की प्रक्रिया में भेज दिए जाते हैं.

अगर आत्महत्या में कोई अधिकारी या परिवार दोषी पाया जाए तो?

अगर जांच में पता चलता है कि आत्महत्या किसी उत्पीड़न या अनुचित दबाव की वजह से हुई है तो तो संबंधित अधिकारी पर अबेटमेंट (IPC Section 306) का केस बन सकता है. उस स्थिति में रिवाल्वर एक महत्वपूर्ण सबूत बन जाती है, जब तक केस कोर्ट में है, तब तक उसे किसी को इश्यू करना या नष्ट करना मना होता है.

अलॉट सर्विस रिवाल्वर किसी को नहीं दे सकते

उत्तर प्रदेश पुलिस के रिटायर्ड आईजी ओपी त्रिपाठी कहते हैं -“नियमों के मुताबिक कोई भी सरकारी असलहा जिसे अलॉट हुआ हो वही उसके लिए जिम्मेदार होता है. वो किसी को अपना सरकारी हथियार नहीं दे सकता. उस हथियार से की जाने वाली किसी भी घटना की जिम्मेदारी उसी की होती है.” पूर्व त्रिपाठी ये भी कहते हैं कि व्यावहारिक तौर पर किसी का सरकारी ऑर्म किसी दूसरे के हाथों में देखा गया है लेकिन कोई घटना हो जाने पर जिम्मेदार वही होगा जिसे असलहा कागजों में अलॉट किया गया हो.

पुलिस से रिटायर्ड डिप्टी एसपी महेश पांडेय कहते हैं कि जब तक कोई घटना या अपराध न हुआ हो तब तक तो ये सवाल खड़ा नहीं होता कि किसे असलाहा अलॉट किया गया किया गया है लेकिन जब भी कोई घटना हो जाती है तो फिर नियमों के मुताबिक ही जांच होती है. नियम ये है कि जिसे हथियार लिखा पढ़ी में दिया गया है उसे ही उसकी देखरेख करनी है. वही ये सुनिश्चित करने को जिम्मेदार होता है कि उस हथियार से कोई गैरकानूनी काम न हो.

क्या सर्विस रिवाल्वर घर पर लेकर जा सकते हैं

पुलिस के कुछ विभागों में ऑफ-ड्यूटी हथियार कैरी करना या घर ले जाने की अनुमति दी जाती है. लेकिन ये खास अनुमति पर अमूमन सीनियर अफसर ही कर सकते हैं, जिसमें सब इंस्पेक्टर, इंस्पेक्टर, पीएसओ शामिल होते हैं.
कुछ पुलिस बल भी इसे घर ले जाने की अनुमति देते हैं, जबकि कई बलों में बिना अनुमति सर्विस रिवाल्वपर को घर नहीं ले जा सकते. अगर सर्विस रिवाल्वर को घर ले जाने की अनुमति मिली हुई है तो उसे सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी भी अफसर और सिपाही की होती है. अगर हथियार चोरी हो जाए. छीन लिया जाए या उससे कोई दुर्घटना या आत्महत्या हो गई हो तो उस अफसर या सिपाही के खिलाफ विभागीय कार्रवाई हो सकती है.

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