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अमृता झा ने अपनी बहू प्रमिता झा को अचार बनाने की पुरानी पारंपरिक रेसिपी सिखाई, वो रेसिपी जो उनकी दादी और चाची ने सालों पहले सिखाई थी. आम का अचार, गुड़ वाला खट्टा-मीठा स्वाद वाली अचार, लाल मिर्च, हरी मिर्च, नींबू और ‘बराबर का अचार’ (आधा आम, आधा खास) हर बोतल में पुराना देसी अंदाज, वही मिट्टी की खुशबू और वो ही घर का भरोसा.
यह अचार 100% शुद्ध सरसों के तेल में तैयार होता है और इसमें इस्तेमाल होते हैं देसी मसाले, कोई मिलावट नहीं, कोई कंप्रोमाइज नहीं. खास बात यह है कि सुकुल आम से बनाया गया यह अचार पांच साल तक खराब नहीं होता. हर बोतल में बस काकी का प्यार और अनुभव ही नहीं, बल्कि परिवार की मेहनत और परंपरा की मिठास भी भरी होती है.
देश के कोने-कोने तक पहुंचा स्वाद
जैसे-जैसे अचार की खुशबू फैली, वैसे-वैसे इसकी मांग बढ़ती गई. पहले यह अचार स्कूल के शिक्षकों और पड़ोसियों तक ही सीमित था. लेकिन फिर इसकी सुगंध पटना, दिल्ली, भागलपुर, जमशेदपुर, कोलकाता और बोकारो तक पहुंच गई. आज “काकी की अचार” का स्वाद सिर्फ़ सीतामढ़ी तक नहीं बल्कि देश के कोने-कोने तक फैल गया है.
इस ब्रांड को डिजिटल पंख दिए हैं अंकिता झा ने, जो पटना में जॉब करती हैं. सोशल मीडिया के जरिए अब ऑर्डर लिए जाते हैं और अलग-अलग शहरों में सप्लाई की जाती है. जितनी मेहनत से अचार बनाया जाता है, उतनी ही नजाकत से उसकी पैकिंग और डिलीवरी होती है. अमृता झा कहती हैं, कि लोग मुझे ‘अचार वाली काकी’ बुलाते हैं, और मुझे इस नाम पर गर्व है. काकी की अचार सिर्फ़ एक स्वाद नहीं, यह एक एहसास है.
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