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गिरिराज पर्वत की परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर लंबी है, जिसे पूरा करने में सामान्य भक्त को 6 से 8 घंटे लगते हैं. लेकिन जो दंडवती परिक्रमा करते हैं, उन्हें एक-एक कदम के लिए सैकड़ों बार लेटना होता है. यह केवल शारीरिक तप नहीं, बल्कि आत्मा से भगवान को समर्पण की चरम सीमा होती है.
लोकल18 से बातचीत में केशव देव नाम के एक भक्त ने बताया, “जिस पर भगवान गिरिराज महाराज की कृपा होती है, वही इस दिव्य परिक्रमा के लिए खिंचकर गोवर्धन आता है. भगवान की राज जब शरीर पर लगती है, तो तन-मन दोनों पवित्र हो जाते हैं. सारे दुख-दर्द दूर हो जाते हैं.”
उन्होंने कहा कि इस परिक्रमा को पूरा करने में तकरीबन एक हफ्ता लग जाता है. लेकिन इस हफ्ते में जो आत्मिक आनंद मिलता है, वो किसी शब्दों में नहीं बयां किया जा सकता.
लोकल18 की टीम ने जब इस साधक से बात करनी चाही, तो उन्होंने किसी से कोई संवाद नहीं किया. बस ज़मीन पर “1161” लिख दिया. यह संख्या उनके हर कदम की तपस्या का प्रतीक थी. इस मौन साधक की यह साधना देखकर आसपास के श्रद्धालु भी अभिभूत हो गए.
गिरिराज की महिमा
दंडवती परिक्रमा करना सिर्फ एक धार्मिक रिवाज नहीं है. यह एक ऐसी भक्ति यात्रा है, जो इंसान को सांसारिक बंधनों से मुक्त करती है. भक्तों का मानना है कि दंडवती परिक्रमा करने वाला व्यक्ति कभी भी सुख, वैभव और समृद्धि से दूर नहीं होता.
गोलोकवास के बाद मिलता है बैकुंठ
मान्यता है कि जो श्रद्धालु गोवर्धन की सच्चे मन से परिक्रमा करते हैं, उन्हें मृत्यु के बाद गोलोकधाम और फिर बैकुंठ की प्राप्ति होती है. भगवान कृष्ण स्वयं इस पर्वत की पूजा करते हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं.
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