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Myopia Awareness Week 2025: देश भर में इस साल 19-25 मई तक मायोपिया अवेयरनेस वीक मनाया जा रहा है. इसका उद्देश्य आंखों की इस गंभीर बीमारी के प्रति लोगों में जागरुकता पैदा करना है. जी हां, आंखों से जुड़ी यह बीमारी कभी 40-50 साल की उम्र के बाद लोगों में देखी जाती थी. लेकिन, आजकल यह बच्चों को भी अपना शिकार बना रही है. हेल्थ एक्सपर्ट के मुताबिक, आज के बच्चों का ज्यादातर समय किताबों के सामने या स्मार्टफोन की स्क्रीन के सामने बीत रहा है. इस बीमारी ने बच्चों को सबसे ज्यादा कोविड-19 के दौरान असर दिखाया था. इंडियन जर्नल ऑफ ऑप्थाल्मोलॉजी में पब्लिश स्टडी के मुताबिक, पिछले 15 सालों में बच्चों में मायोपिया के मामले लगभग 25-30% तक बढ़ चुके हैं.
एक्सपर्ट की मानें तो, वैसे तो मायोपिया बेहद गंभीर बीमारी है, लेकिन यदि समय पर इलाज हो जाए तो परेशानी से बचाव संभव है. अब सवाल है कि आखिर मायोपिया होता क्या है? बच्चों को मायोपिया से कैसे बचाएं? बच्चों में मायोपिया का कैसे पता चलेगा? बच्चों को मायोपिया से बचाने के लिए क्या करें? इस बारे में News18 को बता रहे हैं राजकीय मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. आलोक रंजन-
क्या है मायोपिया
एक्सपर्ट के मुताबिक, मायोपिया एक तरह का रिफ्रेक्टिव एरर है. इस स्थिति में लोगों को पास की चीज तो साफ दिखती है, लेकिन दूर की चीजें धुंधली दिखती हैं. इसमें रोशनी रेटिना पर फोकस न करके उसके सामने फोकस करती है. इसके कारण दूर की चीजों को देखने में परेशानी होती है.
मायोपिया का कारण
मायोपिया के पीछे जेनेटिक्स, ज्यादा स्क्रीन टाइम, बाहर खेलने-कूदने में कमी और इंडोर लाइफस्टाइल का बहुत बड़ा रोल हो सकता है. मायोपिया को ठीक करने के लिए चश्मे का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन अगर इसका वक्त पर इलाज न किया जाए, तो यह परेशानी बढ़ती जाती है.
मायोपिया के लक्षण?
- सिर में दर्द
- बार-बार आंखों को भींचना
- आंखों को बार-बार रगड़ना
- टीवी या किताब बहुत नजदीक से देखना
- दूर की चीज, जैसे पीछे बैठने पर ब्लैकबोर्ड साफ न दिखना
बच्चों को मायोपिया से कैसे बचाएं?
बच्चों के पढ़ते समय या फोन का इस्तेमाल करते समय भी रोशनी का ध्यान रखा जाए. अंधेरे में पढ़ने या फोन चलाने से आंखों पर ज्यादा जोर पड़ता है. इसके अलावा, लेटकर या चलते हुए पढ़ने से बच्चों को मना करें. चलती हुई बस या गाड़ी में भी पढ़ने से आंखों पर जोर पड़ता है. इसलिए बच्चों को एक जगह बैठकर सही दूरी पर अपनी किताब पढ़ने के लिए कहें.
– एक्सपर्ट के मुताबिक, बच्चों को रोज कम से कम 1-2 घंटे घर से बाहर खेलने भेजें. इससे उनका स्क्रीन टाइम कम होगा और बॉडी हेल्दी रहेगी. इसके अलावा, बाहर खेलने से मायोपिया का रिस्क भी कम होगा.
– बच्चों को रोजाना सिर्फ 45 मिनट तक ही फोन, कंप्यूटर या टीवी देखने की इजाजत दें. बच्चों को 20-20-20 रूल भी सिखाएं, ताकि वे डिजिटल स्ट्रेन से अपनी आंखों की रक्षा कर सकें. इस रूल के मुताबिक, हर 20 मिनट के बाद, 20 सेकंड का ब्रेक लें और 20 फीट दूर रखी चीज को देखें.
– बच्चों का नियमित रूप से आंखों का चेकअप करवाएं. चाहे वे आंखों में किसी परेशानी की शिकायत न भी करें, तब भी समय-समय पर आई चेकअप करवाना जरूरी है. मायोपिया का जल्द से जल्द पता लगाने का यह सबसे आसान तरीका है. अगर चश्मे का नंबर आ रहा है तो चश्मा जरूर लगवाएं.
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