[ad_1]
Last Updated:
Phule Movie Public Reaction: महात्मा ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले पर आधारित फिल्म ‘फुले’ 25 अप्रैल 2025 को रिलीज हुई. कोल्हापुर में इसे मिश्रित प्रतिक्रिया मिली.

फुले फिल्म पर लोगों का रिएक्शन
हाइलाइट्स
- फुले फिल्म कोल्हापुर में रिलीज हुई.
- फिल्म को मिली मिश्रित प्रतिक्रिया.
- प्रेरणादायक कहानी, विवादास्पद मुद्दे.
कोल्हापुर: महात्मा ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले के क्रांतिकारी जीवन पर आधारित हिंदी फिल्म ‘फुले’ कल यानी 25 अप्रैल देशभर के सिनेमाघरों में रिलीज हुई. कोल्हापुर, जो सामाजिक जागरूकता और सांस्कृतिक आंदोलनों का केंद्र माना जाता है, वहां के दर्शकों ने इस फिल्म को मिश्रित प्रतिक्रिया दी है. कुछ ने फिल्म को प्रेरणादायक और सामाजिक संदेश देने वाली बताया, जबकि कुछ ने इसकी कहानी और विवादास्पद मुद्दों पर सवाल उठाए हैं. आइए जानते हैं कोल्हापुरकरों की प्रतिक्रियाएं.
प्रेरणादायक कहानी और अभिनय की सराहना
कोल्हापुर के प्रभात सिनेमाघर में फिल्म देखने वाले दर्शकों ने सावित्रीबाई और ज्योतिबा के संघर्षमय जीवन को पर्दे पर जीवंत करने के लिए फिल्म निर्माताओं की सराहना की. यह फिल्म सिर्फ इतिहास नहीं बताती, बल्कि आज की पीढ़ी को शिक्षा और सामाजिक समानता का महत्व समझाती है. प्रतीक गांधी और पत्रलेखा ने ज्योतिबा और सावित्रीबाई की भावनाओं और दृढ़निश्चय को बेहतरीन तरीके से पेश किया है. स्थानीय कॉलेज के छात्रों ने कहा कि सावित्रीबाई के समय में महिलाओं को शिक्षा के लिए कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, यह देखकर बहुत प्रेरणा मिली. फिल्म के संवाद और दृश्य दिल को छू जाते हैं.
संगीत और दृश्यात्मक प्रस्तुति की प्रशंसा
फिल्म के संगीत और दृश्यात्मक प्रस्तुति (visual presentation) को भी कोल्हापुर में पसंद किया गया. फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक और गाने कहानी को पूरक हैं. खासकर सावित्रीबाई के संघर्ष को दर्शाने वाले दृश्य दिल को छू लेने वाले हैं. कुछ दर्शकों ने फिल्म को क्रांति गीत कहते हुए, ज्योतिबा फुले के विचारों को मुख्यधारा में लाने के लिए निर्माताओं की सराहना की.
हालांकि, फिल्म को कोल्हापुर में सर्वत्र समान समर्थन नहीं मिला. फिल्म के प्रदर्शन से पहले ही इसके कुछ दृश्यों के कारण उत्पन्न विवाद का असर कोल्हापुर के दर्शकों पर भी दिखा. ब्राह्मण महासंघ ने फिल्म में ब्राह्मण समाज को नकारात्मक रूप में दिखाने का आरोप लगाया था, जिसके कारण सेंसर बोर्ड ने कुछ दृश्यों पर कैंची चलाई और फिल्म का प्रदर्शन 11 अप्रैल से 25 अप्रैल तक टाल दिया गया. कुछ स्थानीय लोगों का मानना है कि फिल्म ने सिर्फ एक समाज को टारगेट किया है, ऐसा महसूस होता है. ज्योतिबा फुले का काम सर्वसमावेशी था, लेकिन फिल्म में कुछ दृश्य एकतरफा लगते हैं. इससे सामाजिक सौहार्द बिगड़ सकता है.
कोल्हापुर के कुछ हिस्सों में फिल्म को राजनीतिक रंग भी मिला. वंचित बहुजन आघाड़ी के अध्यक्ष प्रकाश आंबेडकर ने फिल्म के दृश्यों पर सेंसर बोर्ड के हस्तक्षेप का विरोध करते हुए आंदोलन की चेतावनी दी थी. इसका असर कोल्हापुर के सामाजिक कार्यकर्ताओं पर भी पड़ा. स्थानीय कार्यकर्ता सागर पाटील ने कहा कि सेंसर बोर्ड ने फिल्म की सच्चाई को काटने की कोशिश की. फुले दंपत्ति के संघर्ष को कम आंकना गलत है. इसके विपरीत, कुछ दर्शकों को फिल्म की कहानी में नाटकीयता ज्यादा और ऐतिहासिक तथ्यों की कमी महसूस हुई. स्थानीय इतिहासकार डॉ. विद्या कुलकर्णी ने कहा कि फिल्म ने फुले दंपत्ति के काम का गौरव किया, लेकिन कुछ जगहों पर ऐतिहासिक संदर्भों की कमी दिखती है. इससे फिल्म का प्रभाव कम हो जाता है.
कोल्हापुर में फिल्म का प्रभाव
कोल्हापुर सामाजिक सुधार और सांस्कृतिक आंदोलनों का गढ़ है. यहां के दर्शकों ने फिल्म को प्रेरणादायक माना, लेकिन साथ ही इसके विवादास्पद मुद्दों के कारण समाज में मतभेद भी उत्पन्न हुए. स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं और शिक्षकों ने फिल्म को स्कूल-कॉलेजों में दिखाने की मांग की है, ताकि नई पीढ़ी को फुले दंपत्ति के काम की जानकारी मिल सके. दूसरी ओर, कुछ ने फिल्म के संवेदनशील मुद्दों पर अधिक संतुलित दृष्टिकोण की अपेक्षा की. फुले फिल्म ने कोल्हापुर में प्रेरणा और विवाद का अनोखा संगम बनाया है. फिल्म ने ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले के काम को फिर से प्रकाश में लाया, लेकिन साथ ही जातीय संवेदनशीलता के मुद्दों के कारण यह चर्चा का विषय बन गया. कोल्हापुर के दर्शकों की मिश्रित प्रतिक्रिया इस फिल्म के सामाजिक प्रभाव का प्रतीक है. भविष्य में ऐसी फिल्मों को अधिक सर्वसमावेशी दृष्टिकोण (An inclusive approach) से पेश करने की उम्मीद स्थानीय लोगों ने व्यक्त की है.
[ad_2]
Source link