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Pilibhit News : कभी गांवों और शहरों में लोगों की प्यास बुझाने वाले कुएं अब समर्सिबल और RO के दौर में उपेक्षा का शिकार हो गए हैं. पीलीभीत के ये ऐतिहासिक कुएं अब सिर्फ शादियों की रस्मों में ही याद किए जाते हैं, व…और पढ़ें
पुराने समय में पानी के लिए गांव-बस्तियों के लोग कुएं या फिर बावलियों पर निर्भर हुआ करते थे. समय के साथ तकनीकी ने तरक्की की और कुएं का स्थान हैंडपंप ने ले लिया. वर्तमान समय में अधिकांश घरों में या तो बोरिंग है या फिर जल आपूर्ति कनेक्शन ऐसे में शहर के साथ ही साथ ग्रामीण अंचलों में भी कुएं लगभग न के बराबर देखने को मिलते हैं. वहीं भूले बिसरे अगर कोई कुआं बच भी गया है तो उसे केवल धार्मिक कार्यों के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
हाल ही में पीलीभीत के सामाजिक कार्यकर्ता शिवम कश्यप ने पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय व राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण से इन कुओं के संरक्षण की अपील की है. लोकल 18 से बातचीत के दौरान शिवम ने बताया कि कुएं महज जलस्रोत न होकर हमारी सांस्कृतिक धरोहर भी है. जिस प्रकार से सरकार तमाम ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण कर रही है ठीक उसी तर्ज पर कुओं को भी संरक्षित करना चाहिए. ऐसा करना न केवल संस्कृति के लिए बल्कि प्रकृति के लिए भी लाभकारी साबित होगा.
ऐतिहासिक धरोहरों को संजोने की मुहिम
लोकल 18 से बातचीत में शिवम कश्यप ने बताया कि उनकी ओर से पीलीभीत की धरोहरों को संजोने की मुहिम चलाई जा रही है. वे लगातार उन विरासतों के संरक्षण को लेकर प्रयासरत हैं जो अपना अस्तित्व खोता जा रही हैं. पीलीभीत के शाहगढ़ के संरक्षण के प्रयास भी की जा रहे हैं. उम्मीद है कि जल्द ही इन धरोहरों का संरक्षण होगा.
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