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Forest Fire Prevention : पीलीभीत टाइगर रिजर्व में आग से बचाव के लिए CAMPA ने 27 लाख रुपये आवंटित किए हैं. 500 किमी लंबी फायर लाइन बनाई जाएगी, जो जंगल की आग को रोकने में मदद करेगी. अप्रैल-जून में आग का खतरा बढ़त…और पढ़ें

जंगल में बनाई गई फायर लाइन. सांकेतिक फोटो
हाइलाइट्स
- CAMPA ने पीलीभीत टाइगर रिजर्व को 27 लाख रुपये आवंटित किए.
- 500 किलोमीटर लंबी फायर लाइन बनाई जाएगी.
- अप्रैल से जून तक आग का खतरा अधिक रहता है.
पीलीभीत : भारत में जंगलों की आग आज एक गंभीर चिंता का विषय है. मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे क्षेत्रों में सूखे मौसम के चलते यहां जंगलों में आग के मामले तेजी से बढ़े हैं. वहीं उत्तर प्रदेश के तराई जिलों में भी बढ़ती गर्मी के चलते जंगलों की आग के मामलों में इजाफा हो सकता है. ये आग, मुख्य रूप से अप्रैल और मई में सामने आती हैं. मिट्टी में नमी कम होने और तेज गर्मी के चलते आग के मामले तेजी से बढ़ते हैं. इस दौरान प्रतिपूरक वनरोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (CAMPA) ने पीलीभीत टाइगर रिजर्व को उसके सभी पांच वन रेंजों-माला, महोफ, बराही, हरीपुर और दियूरिया में अग्नि सुरक्षा अभियान को चलाने के लिए 27 लाख रुपये आवंटित किए हैं.
दरअसल, आग के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्र मानव-वन्यजीव संघर्ष की दृष्टि से चिन्हित गए 72 अत्यधिक संवेदनशील गांवों के साथ जुड़े हुए हैं. पीटीआर के डिप्टी डायरेक्टर मनीष सिंह के मुताबिक इस फंड का उपयोग जंगल क्षेत्र और वन्यजीवों को आग से बचाने के लिए सभी रेंज क्षेत्रों में फायर लाइन बनाने के लिए किया जाना है. यह फायर लाइन तब बनाई जाती है, जब किसान अप्रैल से गेहूं की फसलों के अवशेषों को जलाना शुरू कर देते हैं. जिससे चिंगारी के माध्यम से जंगल में आग लगने का खतरा पैदा हो जाता है.
500 KM तक बनाई जाएगी फायर लाइन
मनीष सिंह ने बताया कि यह रेखाएं 500 किलोमीटर की लंबाई में बिछाई जानी हैं, खास तौर पर रिजर्व की परिधि पर. चूंकि फसल अवशेषों को जलाने से आग फैल सकती है , इसलिए फायर लाइन बनाने के जंगल की जमीन से सूखी घास, झाड़ियां और सूखे गिरे हुए पत्तों के ढेर को हटाकर कम से कम 5 से 6 फीट की चौड़ाई वाली एक साफ पट्टी बनाई जाती है. यह पट्टी आग को फैलने से रोकती है. रिजर्व के अंदरूनी हिस्सों में भी यह रेखाएं बनाई जाएंगी. चूंकि रिजर्व की सीमाएं 730 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई और अधिकांश जगह खुली हैं, ऐसे में जागरूकता व समझाइश के बावजूद भी आसपास के इलाकों से ग्रामीण वन उपज इकट्ठा करने के लिए जंगल में घुस आते हैं. कई बार वे सुलगती हुई बीड़ी को जंगल की सतह पर फेंक देते हैं जिससे आग लगने की आशंका बढ़ जाती है.
अप्रैल से जून तक रहता है खतरा
अप्रैल से लेकर जून के अंतिम सप्ताह में मानसून की शुरुआत के बीच पारा अपने चरम पर रहता है, जिससे घास, झाड़ियां और गिरे हुए पत्ते सूख जाते हैं और आग लगने की आशंका बढ़ जाती है. इसके अलावा रिजर्व के अंदर सभी मानव निर्मित जल स्त्रोतों और तालाबों को टैंकरों के माध्यम से पानी से भर दिया दिया जाएगा, ताकि आग लगने की स्थिति में कोई भी आपदा जैसी परिस्थिति न पनपे.इस पूरे मामले पर अधिक जानकारी देते हुए डिप्टी डायरेक्टर मनीष सिंह बताते हैं कि विभाग की ओर से गर्मी के मौसम में आग लगने की घटनाओं की रोकथाम को लेकर हर तरह से प्रयास किए जा रहे हैं. इसके साथ ही साथ जंगल से सटे इलाकों में रहने वाले ग्रामीणों से भी जागरूक रहने की अपील की जा रही है.
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