[ad_1]
नई दिल्ली. इस बात के कितने प्रतिशत चांस हो सकते हैं कि एक शहर की एक न्यूज़ पोर्टल की रिपोर्टर को अचानक ही लीबिया के किसी आतंकवादी से जुड़ा एक कनेक्शन मिल जाए और फिर उसे पकड़वाने के बजाये वो उस से गप्पे लगाए और फिर अंततः उस से मिलने लीबिया चली जाए, जिस वजह से एफ़बीआय और सीबीआई उसके पीछे पड़ जाये, लीबिया में घमासान गोलीबारी भी हो और अंत भला किस्म का एक एंडिंग भी हो जाए. तमिल फिल्म रांगी जो दिसंबर में सिनेमाघरों में और हाल ही में नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई है, कुछ ऐसी ही कपोल कल्पना की उड़ान है जिसमें अगर मुख्य भूमिका में तृषा की जगह कोई और अभिनेत्री होती तो शायद दर्शक अपने टीवी का वो हश्र करते कि टीवी निर्माताओं को नए टीवी बेचने का अवसर मिल जाता.
रांगी की कहानी लिखी है एआर मुरुगाडॉस और एम सर्वानन ने. मुरुगाडॉस की कलम से गजिनी, थुप्पकी, जय हो, हॉलिडे, कैदी, अकीरा, सरकार और दरबार जैसी फिल्में निकली हैं. वो खुद एक सफल डायरेक्टर हैं जिन्होंने आमिर, रजनीकांत, विजय और सूर्या जैसे कलाकारों को डायरेक्ट किया है. उनकी कहानी इतनी सतही और कमज़ोर कैसे निकली ये शोध का विषय हो सकता है. मुरुगाडॉस के ही असिस्टेंट रहे एम सर्वानन ने अब तक सिर्फ अपनी ही कहानियों पर फिल्म बनायीं है, एकाध दो फिल्मों को छोड़ कर बाकी सामान्य ही रही हैं. रांगी की कहानी में फ्लाइट ऑफ़ फैंसी बहुत ज़्यादा है. भरोसा करने लायक बातें होती ही नहीं हैं.
रांगी एक न्यूज़ पोर्टल में खोजी पत्रकार है जो पार्ट टाइम में गुंडों की पिटाई भी कर लेती है. रांगी के भाई की बेटी के अश्लील वीडियो कोई रांगी के भाई को भेजता है तो रांगी इस मसले को सुलझाते सुलझाते अपनी भांजी की क्लासमेट तक पहुंचती है जिसने रांगी की भांजी के नाम का फेक अकाउंट बनाया होता है और पहुंचती है उन सब लोगों तक जो इस फेक अकाउंट पर उसकी भांजी से बातचीत कर रहे होते हैं. सबकी बैंड बजाने के बाद, सबसे आखिर में रांगी उस फेक अकाउंट के आखिरी कॉन्टैक्ट से बात करती है तो उसे पता चलता है कि ये कॉन्टैक्ट, लीबिया के किसी टेररिस्ट का है. रांगी की खोजी पत्रकारिता उसे प्रेरित करती है कि वो इस राज़ को फाश करे लेकिन इस चक्कर में वो लगभग रोज़ाना ही उस टेररिस्ट से बात करने लगती है. वो टेररिस्ट भी उसकी भांजी के चक्कर में रांगी को अरेस्ट करने वाले पुलिस वाले पर हमला करवा देता है. रांगी को एफ़बीआय अरेस्ट कर लेती है और उसे लीबिया के टेररिस्ट को पकड़वाने के लिए मजबूर करती है. इसके लिए रांगी को अपनी भांजी को लीबिया भेजना होता है ताकि वो टेररिस्ट उस से मिलने आये और एफ़बीआय उसे गिरफ्तार कर सके. वहीँ टेररिस्ट के साथी रांगी की भांजी को ख़त्म करना चाहते है ताकि उनकी गैंग सेफ रहे. एफ़बीआय और टेर्रोरिस्ट्स में गोलीबारी होती है और अंत में पूरी टेररिस्ट गैंग मारी जाती है.
तृषा कृष्णन ने ये फिल्म क्यों की? इसका जवाब कैसे मिलेगा? तृषा का रोल एक ऐसी रिपोर्टर का है जो की पत्रकारिता के ज़रिये समाज बदलना चाहती है फिर वो जर्नलिस्ट से जासूस बन जाती है और अपनी भांजी के नाम का फेक अकाउंट बनाने वाली उसकी क्लासमेट को पकड़ती है. इसके बाद तृषा को उन सभी ठरकियों को ठीक करना होता है जो उसकी भांजी के फेक अकाउंट से अश्लील बातें करते रहते हैं और उसे अपने अश्लील वीडियो भेजने के लिए कहते हैं. इसके बाद तृषा इन सभी ठरकियों को ठोक पीट कर सीधा कर देती है. फिर अचानक वो एक पुलिसवाले की ज़्यादती को अपने न्यूज़ पोर्टल पर डाल देती है और थोड़ी देर बाद उसके गुंडों को भी पीट देती है. उसे टेररिस्ट से सहानुभूति हो जाती है क्योंकि वो नाबालिग है. वो ये भी नहीं समझती कि वो लीबिया में है और वहां जाना मुश्किल है अगर नामुमकिन न भी हो तो. लीबिया की पॉलिटिक्स समझने के लिए वो अपने टीचर के पास जाती है जो एक दसियों चल से चल रहे गृह युद्ध को चुटकियों में समझा देते हैं. कहानी में इतनी कमज़ोर कड़ियाँ हैं कि दर्शक कन्फ्यूज़न में ही रहते हैं. ये पता ही नहीं चलता कि कहानी किस करवट बैठेगी. एक अच्छी फिल्म के लिए ये बहुत ज़रूरी होता है कि दर्शक आने वाली कहानी को थोड़ा बहुत ही सही, भांप ले. रांगी में ऐसा नहीं होता.
रांगी, मारपीट कैसे कर लेती है? क्या पता? रांगी ने जब अपनी भांजी की दोस्त को पकड़ लिया, उसकी भांजी का फेक अकाउंट बना कर इस्तेमाल करते हुए तो उसने अकाउंट बंद क्यों न करवा दिया? ठरकियों को पकड़ कर पुलिस के हवाले क्यों नहीं किया? फिल्म में कुछ भी हो रहा है. रांगी टेक्नोलॉजिकली इतनी कमज़ोर है कि टेररिस्ट अरबिक भाषा में टेक्स्ट और ऑडियो भेजता है और ज़ाहिर है कि कुछ टाइम जोन डिफरेंस भी रहा होगा. साढ़े तीन घंटे के टाइम जोन डिफरेंस को सीधे सीधे उड़ा ही दिया गया है. तृषा के कहने पर की एक इंस्पेक्टर उसे परेशान कर रहा है, लीबिया का एक नाबालिग टेररिस्ट, चेन्नई में अपने किसी साथी की मदद से उस इंस्पेक्टर और बाकी पुलिसवालों को गोली मार देता है. लीबिया के टेररिस्ट के स्लीपर सेल इंडिया में हैं? वो भी चेन्नई में? और वो ये जानते हैं कि तृषा को किस थाने ले जा रहे हैं और उन्हें किस इंस्पेक्टर को गोली मारनी है? वो टेररिस्ट, तृषा के लिए इतनी बड़ी वारदात कर देता है और तृषा को मामले की गंभीरता समझ ही नहीं आती? कुछ भी चल रहा है.
संगीत, सिनेमेटोग्राफी, एडिटिंग की बात करना सिवाय खानापूर्ति के कुछ नहीं होगा क्यों कि फिल्म की कहानी ही इतनी लचर है कि एक समझदार दर्शक तो बकवास पकड़ ही लेगा. रांगी एक ऐसी कहानी है जो यूँ ही गप्पे लगाते लगाते लिख ली गयी है और लॉजिक को दूर से भगा दिया गया है. आप इस फिल्म को देख सकते हैं सिर्फ मनोरंजन के उद्देश्य से क्योंकि एक्शन तो ठीक ठाक है. फिल्म बकवास है.
डिटेल्ड रेटिंग
कहानी | : | |
स्क्रिनप्ल | : | |
डायरेक्शन | : | |
संगीत | : |
Tags: OTT Platforms
FIRST PUBLISHED : February 9, 2023, 07:00 IST
[ad_2]
Source link