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Tungnath Temple Trek : चोपता तुंगनाथ दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है. समुद्र तल से 12 हजार फीस से अधिक ऊंचाई पर मौजूद इस शिव मंदिर तक पहुंचना बेहद रोमांचक अनुभव होता है. लेकिन इसके आगे चंद्रशिला पीक तक बिना पह…और पढ़ें
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Tungnath Temple Trek : दिल्ली से चोपता तक की बाईक से यात्रा अपने आप में अद्भुत अहसास है.
Tungnath Temple Trek : काफी दिन से सफेद बर्फ से ढके पहाड़ देखने का मन था. लेकिन कोई यात्रा प्लान नहीं हो पा रही थी. अचानक 31 जनवरी को मेरे क्लासमेट अतुल गुप्ता का फोन आया और यह छोटा सा ड्रीम पूरा होते नजर आने लगा. उसने उसने तुंगनाथ ट्रेक का प्रस्ताव दिया, जिसे इनकार कर पाना मेरे लिए नामुंकिन था. फटाफट कैमरा, फोन और पावर बैंक चार्ज पर लगाया और निकलने की तैयारी शुरू. अगले दो घंटे बाद हम लोग दिल्ली से तुंगनाथ के रास्ते पर थे. पहली बार बर्फ से लदे पहाड़ के बीच चलने और दुनिया के सबसे ऊंचा शिव मंदिर तक जाने का रोमांच अपने चरम पर था.
दिल्ली से चलकर ऋषिकेश पहुंचने में रात को करीब दो बज गए. रात को ऋषिकेश से आगे जाने नहीं देते. ऐसे में हम लोगों को यहीं एक होटल में सोना पड़ा. जिसका किराया 500 रुपये था. अगली सुबह फिर से यात्रा शुरू हुई और छोटे-छोटे ब्रेक लेते हुए हम लोग शाम को करीब सात बजे चोपता पहुंचे. चोपता पहुंचने में अंधेरा हो चुका था लेकिन जगह-जगह बर्फ दिखने लगी थी. इसने बर्फ न दिखने की नाउम्मीदी से बचाए रखा.
चोपता में बुख्याल वाली चाय
चोपता में नजारा रोमांच से भरपूर था. लोग अगली सुबह ट्रेकिंग के लिए स्नो बूट, ट्रेकिंग स्टिक, ग्लव्स वगैरह चीजें खरीद और किराए पर ले रहे थे. हम लोगों ने भी रात में सोने के लिए 1000 रुपये का एक कमरा लिया. यहां एक ढाबे पर खाना खाते समय मेन्यू में बुख्याल वाली चाय और बुख्याल वाली खाने की थाली भी दिखी. पूछने पर सर्व करने वाले लड़के ने ही कहा अरे उसमें कुछ भी खास नहीं है. हम लोग हंसते रहे कि क्या चाय बुग्याल की घास डालकर बनाएगा.
चोपता उत्तराखंड का एक छोटा खूबसूरत सा हिल स्टेशन है. जिसके बारे में ब्रिटिश कमिश्नर एटिकिंसन ने कहा था कि जिसने अपने जीवन में चोपता नहीं देखा, उसने कुछ नहीं देखा. चोपता की हरियाली तो हम लोगों की आंख से छूट गई. रात होने के चलते बस जंगल की आवाजें और तारों से भरा आसमान ही दिख सका.
तुंगनाथ और चंद्रशिला की ट्रेकिंग
1 फरवरी को तड़के करीब चार बजे उठकर हम लोगों ने चाय पी, रास्ते के लिए दो बॉटल पानी और एक ग्लव्स की खरीदारी की. इसके बाद सबने गेट पर लटकी घंटियां बजकर और भगवान शिव का नाम लेकर ट्रेकिंग शुरू की. इस वक्त पूरी तरह अंधेरा था. मोबाइल और टार्च की रोशनी से रास्ता देखना पड़ रहा था, जो कि थोड़ा ऊबड-खाबड़ था. कुछ अनुभवी लोगों की ओर से लगातार ब्लैक आईस से बचकर चलने की सलाह मिल रही थी. ट्रेकिंग की शुरुआत में सभी लोग ऊर्जा और उत्साह से भरपूर थे. ऐसे में महज करीब 500 मीटर चलने में ही सबकी सांसें उखड़ने लगी और पैर जवाब देने लगे. मेरा भी इरादा हिलने लगा और मैंने अतुल से कहा भी कि वापस जा रहा हूं. लेकिन अगले 500 मीटर में चलने का थोड़ा सलीका आया और स्पीड पर भी कंट्रोल हुआ.
इस ट्रेकिंग में महसूस हुआ कि ट्रेकिंग करते हुए व्यक्ति दोबारा चलना सीखता है. मैदान में चलने से पहाड़ में चलना एकदम अलग है. धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए आसमान में फूटती भोर की पहली किरण ने फिर से जोश भर दिया. अब पहाड़ों पर बर्फ की चादर दिखने लगी. ऐसा लगा जैसे हम अलसाये पहाड़ों की नींद में खलल डाल रहे हैं. अब लगातार ब्लैक आईस मिलने लगी. जिससे बचकर चलना चुनौती थी. इस पर कदम पड़ते ही पल भर में धड़ाम से गिरते थे.
तुंगनाथ नाथ शिव मंदिर
तुंगनाथ उत्तराखंड के पंचकेदार में से हैं. तुंगनाथ की चोटी 12,073 फीट ऊंची है. जो इसे दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर बनाती है. यह पर्वत मंदाकिनी और अलकनंदा नदी घाटियों का निर्माण करते हैं. मान्यता है कि तुंगनाथ शिव मंदिर पांडवों ने बनवाया था. तुंगनाथ मंदिर तक पहुंचना हम लोगों के लिए अब तक का सबसे चुनौतीपूर्ण रास्ता था. अगले कुछ सौ मीटर का रास्ता बर्फ और ब्लैक आईस से पटा हुआ था. जिस पर हर कोई फिसल रहा था. मंदिर के ठीक नीचे चाय और मैगी की एक शॉप है. यहां चाय पीने और कुछ तस्वीरें कैप्चर करने के बाद फिसलते, लड़खड़ाते हुए मंदिर तक पहुंचे. मंदिर तो अभी मई में खुलेगा, लेकिन उसके गेट पर लगी जाली से दिखने वाला दृश्य अभीभूत करने वाला था. मंदिर परिसर में बर्फ बिछी हुई थी. उसके पीछे के पहाड़ों पर बर्फ चमक रही थी. यहां कुछ देर रुकने के बाद अब चंद्रशिला तक जाने का फैसला किया गया. कई लोगों की हिम्मत इसके आगे जाने से जवाब दे गई, तो उन लोगों ने वापस लौटना ही ठीक समझा.
तुंगनाथ से चंद्रशिला
तुंगनाथ मंदिर ये चंद्रशिला का ट्रेक करीब 1.5 किलोमीटर का है. लेकिन इसमें चढ़ाई खड़ी होने के साथ ब्लैक आईस से भी अधिक सामना होता है. चंद्रशिला को लेकर एक मान्यता यह भी है कि रावण के वध के बाद भगवान राम ने इस जगह भी पश्चाताप किया था. मुझे महसूस हुआ कि पूरे ट्रेक का सबसे रोमांचक और सबसे खूबसूरत हिस्सा तुंगनाथ से चंद्रशिला का ही है. इसे ट्रेक न करने पर व्यक्ति काफी कुछ मिस कर देता है. सुबह-सुबह चंद्रशिला के पीक पर पहुंचकर जो नजारा दिखता है, वह नि:शब्द कर देता है. चारो तरफ नीली आभा से ढ़की चोटियां और उनके बीच सबसे ऊंची पीक पर आप खड़े हैं. चंद्रशिला के आसपास उससे नीचे की सभी चोटियों पर बर्फ थी, लेकिन चंद्रशिला पर बर्फ का एक भी कण नहीं मिला. यह भी अद्भुत था. इस पीक पर हम लोगों ने करीब डेढ़ घंटे वक्त बिताया. आराम से पत्थर पर धूप में कुछ देर सोए रहे. बेहद सुकून भरा पल था.
चंद्रशिला से वापसी चढ़ने से अधिक चुनौतीपूर्ण था. अब तक धूप हो चुकी थी. ऐसे में जाते समय जो ब्लैक आईस कम फिसल रही थी, वह अब एकदम सीसे जैसी चिकनी हो गई थी. मैंने तो गिरने की बजाए कई जगह बैठकर फिसलना ही बेहतर समझा. हालांकि इसमें भी अलग रोमांच था.
दिल्ली से तुंगनाथ कैसे जाएं
दूरी- दिल्ली से चोपता की दूरी करीब 452 किलोमीटर है. चोपता से तुंगनाथ के लिए 4 किलोमीटर का ट्रेक शुरू होता है.
दिल्ली से चोपता कैसे जाएं- सड़क से जाने के लिए दो रास्ते हैं. एक रास्ता देहरादून होकर है. इस रास्ते से दूरी करीब 551 किमी है. दूसरा रास्ता दिल्ली से हरिद्वार/ऋषिकेश होते हुए. इधर से दूरी 452 किमी है.
एंट्री फीस
तुंगनाथ का ट्रेक केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य के अंतर्गत आता है. इसलिए ट्रेक करने वालों से प्रति व्यक्ति 100 रुपये फीस ली जाती है. एंट्री प्वाइंट पर फीस जमा करनी पड़ती है.
New Delhi,New Delhi,Delhi
February 09, 2025, 17:12 IST
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