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सोनभद्र जिले के गांवों में डेढ़ दशक पहले रात में बारातें नहीं जा सकती थीं, पुलों की कमी और लूटपाट के डर से. अब स्थिति बदल चुकी है, लेकिन मूलभूत सुविधाओं की कमी अभी भी है.

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हाइलाइट्स

  • सोनभद्र के गांवों में रात में बारातें नहीं जाती थीं.
  • पुलों की कमी और लूटपाट के डर से बारातें रुकती थीं.
  • अब स्थिति बदली, लेकिन मूलभूत सुविधाओं की कमी है.

सोनभद्र: उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में आज से लगभग डेढ़ दशक पहले कई ऐसे गांव थे, जहां रात के समय कोई भी बारात नहीं जा सकती थी. यह स्थिति खासकर नदी के किनारे के गांवों में थी, जहां बाराती रात भर नदी के किनारे पहरा देते थे. समस्याएं और भी बढ़ जाती थीं जब नदी का पानी गहरा हो जाता था. हम बात कर रहे हैं यूपी के अति पिछड़े जिले सोनभद्र की, जहां चोपन और घोरावल ब्लॉक के कई गांवों में रात्रि के समय बारात का जाना संभव नहीं था. इसका मुख्य कारण था पुलों का न होना.
हालांकि, बदलते हुए भारत में अब इन गांवों की तस्वीर पूरी तरह से बदल चुकी है. फिर भी, उस दौर की यादें आज भी लोगों के मन में ताजातरीन हैं.

बदलते भारत के साथ गांव की भी बदली तस्वीर
सोनभद्र जिले का वह इलाका चारों ओर पहाड़ों और नदियों से घिरा हुआ है. इस जिले के सोन नदी के किनारे स्थित गांवों जैसे कुडारी, सेमिआ, घोरिया, कुरछा, चतरवार, बड़गावां, महलपुर, और अगोरी गोठानी में अगर उस समय रात के समय जाना होता, तो यह असंभव सा लगता था, क्योंकि ये गांव सोन नदी से घिरे हुए थे.
वह समय ऐसा था कि अगर किसी को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होतीं तो गांव में झोलाछाप डॉक्टर ही एकमात्र विकल्प होते थे, या फिर कई लोगों की जान चली जाती थी. लेकिन बदलते हुए भारत में अब इन गांवों की स्थिति बदल चुकी है. हालांकि, आज भी इन गांवों में मूलभूत सुविधाओं की कमी महसूस की जाती है.

दिन में भी होती थी लूट
इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेंद्र पाठक ने बताया कि उस दौर में इन गांवों में दिन के समय भी लूटपाट की घटनाएं हुआ करती थीं. रात के समय तो स्थिति और भी खराब होती थी. अंधेरे होते ही सड़कें सुनसान हो जाती थीं, क्योंकि जंगलों में जंगली जानवरों का डर था और डकैती की वारदातें आम थीं. बारातों तक को लूटा जाता था.

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