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वाराणसी स्थित संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में देश की सबसे प्राचीन पांडुलिपियां सुरक्षित हैं, जिनमें श्रीमद्भागवत, स्वर्णाक्षरों में गीता और कपड़े पर लिखी दुर्गासप्तशती शामिल हैं. जल्द ही इन्हें आम जनता के…और पढ़ें
हाइलाइट्स
- वाराणसी की लाइब्रेरी में सवा लाख दुर्लभ पांडुलिपियां हैं.
- श्रीमद्भागवत, स्वर्णाक्षरों में गीता और दुर्गासप्तशती शामिल हैं.
- जल्द ही आम जनता के लिए पांडुलिपियां प्रदर्शित की जाएंगी.
वाराणसी- वाराणसी दुनिया के सबसे प्राचीनतम शहरों में से एक है. इस शहर में वेद विद्या की शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी स्थापित है. इस यूनिवर्सिटी में सवा लाख दुर्लभ पांडुलिपियां रखी गई है. खास बात ये है कि यहां रखी गई पांडुलिपियों में 1181 संवत की देश की सबसे प्राचीन श्रीमद्भागवत पुराण भी है. इसके अलावा भगवतगीता के स्वर्णाक्षरों में लिखी लिपि को भी यहां संरक्षित रखा गया है. बताया जाता है यह पांडुलिपि देश के सबसे प्राचीनतम कागज पर लिखी गई है.
ये है सरस्वती भवन का इतिहास
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना 1791 में हुई थी. उस वक्त इसका नाम शासकीय संस्कृत महाविद्यालय था. साल 1894 में इस विश्वविद्यालय में सरस्वती भवन नाम के लाइब्रेरी भवन का निर्माण शुरू हुआ, जो 1914 में पूरा बनकर पूरी तरह तैयार हुआ. जिसके बाद सयुंक्त प्रांत के लेफ्टिनेंट गर्वनर जेम्स स्कोर्गी मेस्टन ने इसका उद्घाटन किया. इसी सरस्वती भवन में इन दुर्लभ पांडुलिपियों को सहेज कर रखा गया है.
रखे हैं कई दुर्लभ पांडुलिपि
विश्वविद्यालय के कुलपति बिहारी लाल शर्मा ने बताया कि यहां रखें हजारों पांडुलिपियों में सबसे पुराना पांडुलिपि श्रीमद्भागवतम है, जो 12 वीं शताब्दी का है. इसके अलावा यहां 800, 600 और 500 साल पुराना दुर्लभ पांडुलिपि भी मौजूद हैं. फिलहाल इन सभी पांडुलिपियों को क्यूरेटिव प्रिजर्वेशन करके उसे संरक्षित किया जा रहा है. इन सभी पांडुलिपियों का कैटलॉग भी तैयार हो रहा है. उसके बाद इन पांडुलिपियों में छुपे ज्ञान को विद्वानों की मदद से लोगों के बीच प्रस्तुत किया जाएगा और इसका प्रकाशन भी कराया जाएगा.
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