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देवरिया. भोजपुरी लोकगीतों में अगर कोई नाम शालीनता, गरिमा और परंपरा के साथ उभरकर सामने आया है, तो वह है राकेश तिवारी. देवरिया जनपद के भाटपार रानी क्षेत्र के पिपरहिया गांव निवासी राकेश तिवारी ने संगीत के सफर की शुरुआत अपने नाना स्वर्गीय श्री पवहारी शरण तिवारी के साथ की थी. नाना के साथ-साथ, मामा राजा मणि और शत्रुघ्न मणि का भी उनके जीवन पर गहरा असर रहा, जिन्होंने उनकी कला को निखारने में अहम भूमिका निभाई.
राकेश के पिता श्री अशोक तिवारी रेलवे सुरक्षा बल (RPF) में कार्यरत थे, जबकि उनका पारिवारिक और सांस्कृतिक आधार खेती से जुड़ा रहा है. यही कारण है कि राकेश की गायकी में खेत-खलिहान, गांव की संस्कृति और मिट्टी की सोंधी खुशबू झलकती है.
ली है संगीत की विधिवत शिक्षा
राकेश ने अपनी शुरूआती पढ़ाई देवरिया में की और फिर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में दाखिला लिया, जहां उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा श्री व्यास जी मौर्य से ली. संगीत जगत में उनको पहला बड़ा मौका 2006 में ई-टीवी पर प्रसारित ‘Folk जलवा’ कार्यक्रम से मिला, जिसमें वह विजेता बने. इसके बाद 2009 में मुंबई में हुए ‘सुर संग्राम’ में उन्होंने चैलेंजर विजेता का खिताब जीता और खूब तारीफ बटोरी.
कहां रखी गई नींव
राकेश मानते हैं कि उनके संगीत सफर की नींव उनके नाना और मामा ने रखी. उन्होंने हमेशा उन्हें भोजपुरी की गरिमा और सच्चाई के साथ जुड़ने की प्रेरणा दी. मातृभाषा भोजपुरी को ही उन्होंने अपना करियर बनाया और आज वे उन चुनिंदा गायकों में हैं, जिन्होंने अश्लीलता से दूरी बनाकर सिर्फ प्यार और संस्कृति से जुड़े गीतों को अपनाया.
एक साथ सात गाने ट्रेंडिंग में
इस समय राकेश तिवारी के सात गाने एक साथ यूट्यूब पर ट्रेंड कर रहे हैं। इनमें –
“कोनो दिनवा शिकार हो जायबू, हमसे मिलबू हमार हो जयबू” और “आज अच्छा कटी दिन बुझाता, भोरही मुस्कुरा देले बाली” जैसे गीतों को श्रोताओं का भरपूर प्यार मिल रहा है.
फिल्मों में भी निभाई भूमिका
राकेश तिवारी ने न सिर्फ मंचों पर, बल्कि भोजपुरी फिल्मों में भी अपनी कला का लोहा मनवाया है. उन्होंने मनोज तिवारी के साथ ‘देवरा भईल दीवाना’ और रवि किशन के साथ ‘सत्यमेव जयते’ जैसी फिल्मों में भी काम किया है. उनकी अभिनय क्षमता को भी दर्शकों ने पसंद किया है.
हालांकि, उन्हें इस बात का दुख है कि आज कई मंचों पर उनके गाने गाए जाते हैं, लेकिन उनका नाम नहीं लिया जाता. लोकल 18 से बातचीत में उन्होंने कहा, “हमरा गाना हर जगह बाजे ला, लेकिन नाम ना आवेला – ई बात चुभेला.”
देश-विदेश में भोजपुरी का परचम
राकेश अब तक थाईलैंड, बैंकॉक और मॉरीशस समेत कई देशों में भोजपुरी संस्कृति का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. हर दिन वे किसी न किसी कार्यक्रम में प्रस्तुति देते हैं. लोकल 18 से उनकी बातचीत भी एक सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान ही हो सकी.
अपनी सफलता का श्रेय वे अपने माता-पिता, खासकर मां सुभद्रा तिवारी को देते हैं, और साथ ही मां विंध्यवासिनी देवी को अपनी आराध्य मानते हैं. राकेश तिवारी आज सिर्फ एक गायक नहीं, बल्कि भोजपुरी भाषा और संस्कृति के जागरूक प्रहरी बन चुके हैं. आने वाले वर्षों में उनका नाम और भी ऊंचाइयों पर पहुंचेगा, इसमें कोई शक नहीं.
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